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३०६. तारकी व्याख्या[१]

जोहानिसबर्ग
अगस्त १०, १९०३

अगस्त ४ के संलग्न तारकी सविस्तर व्याख्या

पिछले सप्ताह जो तार भेजा गया था उसकी प्रति संलग्न कर रहा हूँ; हम चिंताके साथ नतीजेकी राह देख रहे हैं ।

तार सात हिस्सेमें विभाजित है :

(१) गैर-शरणार्थी भारतीयोंको उपनिवेशमें प्रवेश करनेकी अनुमति बिलकुल नहीं मिलती, जिसके कारण स्थानीय लोगोंको जबरदस्त असुविधा हो रही है ।

(२) शरणार्थी भारतीय भी बहुत कम संख्यामें आने दिये जा रहे हैं।

(३) नेटालमें प्लेग है, यह बहाना लेकर नेटालसे भारतीयोंके आनेपर पूरी-पूरी रोक है। यूरोपीय और काफिर बेरोक-टोक आ सकते हैं। ट्रान्सवालके भारतीयोंको नेटाल आकर लौट जानेकी अनुमति है । इस तरह यह रोक प्लेगके बचावकी दृष्टिसे है, यह कहना कठिन है।

(४) श्री चेम्बरलेन लॉर्ड मिलनरके खरीते और वर्तमान भारतीय विरोधी कानूनपर भी विचार कर रहे हैं; फिर भी सरकारने १९ पृथक् बस्तियाँ रूप-रेखांकित कर दी हैं। कानूनमें परिवर्तन होनेतक वर्तमान कानूनके अन्तर्गत काम चलाऊ उपाय किये जा सकते हैं; किन्तु अगर कानूनको सचमुच सुधारना है तो बस्तियोंको बनाकर पक्का उपाय करनेकी बात समझमें नहीं आती ।

(५) श्री चेम्बरलेनने आश्वासन दिया था कि अंग्रेज-अफसरों द्वारा दिये गये पृथक् बस्तियोंके बाहर व्यापार कर सकनेके सब वर्तमान परवाने मान्य रहेंगे । किन्तु ऐसे आश्वासनके सिवाय ब्रिटिश-विधानके अन्तर्गत भारतीय कमसे-कम यह आशा तो करते ही हैं कि उनके निहित स्वार्थोकी, चाहे वे युद्धके पहले स्थापित हुए हों चाहे बादमें, अवहेलना नहीं की जायेगी । बाजार-सूचनाके मुताबिक, उनको खतरा है जिनके पास युद्धके पहले परवाने नहीं थे । लॉर्ड मिलनरके नाम मुद्रित प्रार्थनापत्र अभी विचाराधीन है; किन्तु लोगोंके मन शान्त करनेके लिए परवानोंके सम्बन्धमें जल्दी ही आश्वासन दिया जाना जरूरी है ।

(६) पिछले साल लड़ाई छिड़नेके समय जिनके पास परवाने नहीं थे ऐसे कुछ भारतीयोंको परवाने दिये गये थे। इस साल हाकिमोंने इन्हें नये परवाने नहीं दिये । बाजार सूचनाके मुताबिक कमसे-कम वर्षान्ततक ये परवाने बदल कर नये किए जाने चाहिए। जोहानिसबर्ग का तहसीलदार उन्हें नया करनेसे इस बहाने इनकार करता है कि नये करनेकी उनकी मियाद निकल गई है; हालाँकि सचमुचमें सालके शुरूमें वे नये नहीं किये गये यह कसूर परवानादारोंका नहीं है ।

  1. यह वक्तव्य गांधीजी द्वारा दादाभाई नौरोजीको भेजा गया था । दादाभाईने इसे भारत-मंत्रीके पास भेजा | इंडियामें भी प्रकाशनार्थ भेजा गया था, जिसमें यह कुछ परिवर्तित रूपमें १८-९-१९०३ को 'हमारे जोहानिसबर्ग संवाददातासे प्राप्त' रूपमें प्रकाशित हुआ था।