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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

(७) बताया जाता है कि लॉर्ड मिलनरने ऐसा कहा है कि स्वच्छताके तथा नैतिक तकाजेसे अनिवार्य पृथक्करण जरूरी है। यह दोषारोपण इतना गंभीर है कि इसका तार द्वारा खण्डन करना आवश्यक जान पड़ा। इसके बारेमें इस समय और कुछ कहनेकी जरूरत नहीं है। दोषारोपण ठीक हो तो भी व्यापारको पृथक् बस्तियोंतक सीमित कर देना न्याययुक्त नहीं कहा जा सकता | इंडियन ओपिनियनके सम्पादक इसके खण्डनमें एक वक्तव्यको उद्धृत करते हुए इस दोषारोपणके बारेमें अधिक विस्तारसे लिख रहे हैं।[१] मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि इस पत्रकी व्यवस्था जिम्मेदार हाथोंमें है, और इसमें सही-सही जानकारी देने और अतिशयोक्तिसे हर हालतमें बचनेकी कोशिश की जाती है।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफ़िस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ ।

३०७. साक्षी : लॉर्ड मिलनरके अस्वच्छता-सम्बन्धी
आरोपके विरुद्ध

ट्रान्सवालके अखबारोंमें एक तार छपा है, जिसमें बताया गया है कि ट्रान्सवालके वर्तमान कानूनमें संशोधन सुझाते हुए लॉर्ड मिलनरने अपने खरीतेमें भारतीय बस्तियोंकी अस्वच्छताके बारेमें विस्तारसे लिखा है । इस सिलसिलेमें डॉ० एफ० पी० मैरेस और डॉ० जॉन्स्टनने जो साक्षी दी है उनके अंश हम नीचे दे रहे हैं।

पाठकोंको स्मरण होगा कि डॉक्टर मैरेस लगभग दस वर्षसे जोहानिसबर्गमें डॉक्टरी कर रहे हैं, भारतीयोंमें उनका धंधा बहुत चलता है और वे एडिनबर्गकी एम० डी० उपाधिसे विभूषित हैं । डॉ० जॉन्स्टन सफाईके विशेषज्ञ हैं, एडिनबर्गके रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्सके फेलो हैं और एडिनबर्ग तथा ग्लासगोसे सार्वजनिक स्वास्थ्यका डिप्लोमा प्राप्त हैं। दक्षिण आफ्रिकाका उनका अनुभव बहुत व्यापक है ।

जोहानिसबर्गके अस्वच्छ क्षेत्र सुधार-योजना आयोगके समक्ष बहुत-सा सबूत पेश हुआ है । वह गत २२ जनवरीको प्रकाशित कर दिया गया है। जिनके पास समय हो, वे कृपा करके वह सब पढ़ जायें। इसमें जोहानिसबर्गके स्वास्थ्य अधिकारी डॉ० पोर्टरकी भी गवाही हुई थी। डॉ० जॉन्स्टनकी भी हुई थी। डॉ० जॉन्स्टनसे जिरहमें जब कहा गया कि वे डॉक्टर पोर्टरके कथनके साथ अपने कथन की तुलना करके बतायें तो उन्होंने बहुत-सी दिलचस्प बातें कहीं थीं । हमने वे सब बातें यहाँ नहीं दी हैं।

डॉ० पोर्टर एक बहुत प्रतिष्ठित सज्जन हैं। परन्तु उन्हें दक्षिण आफ्रिकाके जीवनका अनुभव लगभग नहीं के बराबर है। उनकी नजरोंमें जो चीज लंदनमें पाये जानेवाले मानदण्डतक नहीं पहुँचती, और मैली या भद्दी है, वह सब बिलकुल गन्दी है । उनकी गवाहीकी व्याख्या केवल एक ही शब्दसे की जा सकती है, वह शब्द है, पागलपन । एक उदाहरण लीजिए। जोहानिसबर्गकी बस्तीके भारतीयोंके बारेमें ये फरमाते हैं: "कभी डॉक्टरको बुलानेकी बात तो वे सोचते ही नहीं, और बीमारीके अस्तित्वको शुतुर्मुर्गकी भाँति छिपा रखनेको ही ठीक मानते हैं ।"

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