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१५. दादा उस्मानका मुकदमा

नीचे दी जानेवाली सामग्री डर्बन नगर-परिषद द्वारा सुनी गई एफ अपीलकी रिपोर्ट है। अपील करनेवालोंकी ओरसे गांधीजी खड़े हुए थे। उन्होंने भारतीयोंको प्रजातीय आधारपर व्यापारके परवाने न देनेके विरुद्ध जोरदार दलीलें की थीं। परिषदने अपील खारिज कर दी थी।

डर्बन
 
सितम्बर १४, १८९८
 

दादा उस्मानने ग्रे स्ट्रीटकी दूकान नं० ११७ के लिए थोक तथा फुटकर व्यापारके परवानेकी अर्जी दी थी। परवाना-अधिकारीने उसे नामंजूर कर दिया । दादा उस्मानने परवाना-अधिकारीके निर्णयके खिलाफ अपील की, जिसपर विचार करनेके लिए नगर-परिषदने कल तीसरे पहर अपने सभाभवनमें एक विशेष बैठक की थी। माननीय मेयर महोदय (श्री जे० निकोल) अध्यक्ष थे और माननीय श्री जेमिसन, एम० एल० सी० तथा सर्वश्री एम० एस० ईवान्स, एम० एल० ए०, हेनबुड, कालिन्स, चैलिनॉर, हिचिन्स, टेलर, लैबिस्टर, गालिक (नगर- परिषदके सॉलिसिटर) और डायर (परवाना-अधिकारी) भी उपस्थित थे। श्री गांधी अर्जदारके वकीलकी हैसियतसे उपस्थित हुए थे।

टाउन-क्लार्फ (श्री कूल)ने परवाना-अधिकारीके निर्णयके निम्नलिखित कारण पढ़कर सुनाये :

" जहाँ तक मैं समझा हूँ, सन् १८९७ के कानून १८ को मंजूर करनेमें सरफारकी दृष्टि यह रही है कि कुछ वर्गों के लोगों के नाम, जिन्हें आम तौरपर अवांछनीय माना जाता है, परवाने देनेपर कुछ रोक रखी जाये । और चूँकि मुझे विश्वास है कि मैं यह माननेमें भूल नहीं कर रहा हूँ कि प्रस्तुत अर्जदार उन्हीं वर्गोंमें गिना जायेगा, और चूँकि डर्बनमें व्यापार करनेफा परवाना उसके पास कभी नहीं रहा है, इसलिए परवाना देनेसे इनकार करना मैंने अपना कर्तव्य समझा है।"

दूकानके सम्बन्धमें सफाई-दारोगाकी रिपोर्ट भी पढ़ी गई । उसका आशय यह था फि उस दूकानके लिए पहले परवाना जारी था और वह उपयुक्त है।

वेस्ट स्ट्रीटके व्यापारी श्री अलेक्जेंडर मैकविलियमको गवाहके तौरपर बुलाया गया था। उन्होंने कहा, मैंने अर्जदारके साथ बड़े पैमानेपर कारोबार किया है । उसपर मेरा एक साथ ५०० पौंड तफका कर्ज रहा है । मैंने उसे एक अच्छा व्यापारी और व्यवहार में ईमानदार पाया है । वास्तवमें मैं उसपर फिरसे ५०० पौंड तकका भरोसा कर सकता हूँ। गवाहके खयालसे, उक्त मकानमें जो व्यापार करनेका इरादा किया गया है उसके लिए वह उपयुक्त और शोभास्पद है।

श्री कालिन्स : क्या अर्जदारमें हिसाब-किताब रखनेकी योग्यता है ?

गवाह : मुझे मालूम नहीं। परन्तु जिस तरह वह मेरे नाम पत्रोंमें अपनी बात व्यक्त करता है, उससे मैं कल्पना करता हूँ कि उसमें हिसाब-किताब रखनेकी योग्यता होगी ही।

अर्जदार दादा उस्मानने भी गवाही दी। उन्होंने कहा कि मैं नेटालमें १८ वर्षसे रह रहा हूँ । इस सारे समयमें मैं व्यापार ही करता रहा हूँ। अमसिंगामें मेरी दो दूफाने हैं । मैं डर्बनमें एक दूकान खोलना चाहता हूँ, क्योंकि मेरा परिवार यहाँ रहता है । यहाँ मेरा घरू खर्च २० पौंड माहवार है और मेरे मकान तथा दूकानका किराया फरोंको मिलाकर ११ पौंड होता है । मेरे घर और दूकानमें बिजलीफी रोशनी है और मेरे घरकी साज-सज्जा, जिसकी कीमत १०० पौडसे ज्यादा है, डर्बनकी खरीदी हुई है। डर्बनकी कई बड़ी-बड़ी पेदियों के साय मेरा व्यापारिक व्यवहार चलता है और मैं हिसाबकी दोनों सिंगल एन्ट्री और डबल एन्ट्री प्रणालियों जानता हूँ, और अंग्रेजीमें हिसाब रख सकता हूँ। परवाना-अधिकारीने मेरी हिसाबकी किताबोंकी जाँच की थी और

१. हिसाबफा पश्चिमी तरीका ।

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