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दादा उस्मानका मुकदमा

उन्हें ठीक ठहराया था। मेरी अन्दरूनी इलाकोंकी दूकानोंको माल भेजनेके लिए. परवाना निहायत जरूरी नहीं है । फिर भी मैं परवाना चाहता हूँ, ताकि मेरा डर्बनमें रहनेका खर्व पूरा हो जाये । मुझे डर्बनमें मकान रखना ही पड़ता है, क्योंकि मुझे बार-बार अपने कारोबारके सम्बन्धमें फ्राईहाइड तथा अमसिंगा जाना पड़ता है और मेरी पत्नी मेरे साथ इन स्थानोंकी यात्रा बहुत सहूलियतसे नहीं कर पाती । अमसिंगामें मेरी दो दूकानें हैं । डवनमें दूकान चलानेका परवाना मेरे पास कभी नहीं रहा । अमसिंगाकी दूकानें मेरे पास १५ वर्षसे अधिकसे हैं और इस बीच मैंने अपना सारा माल डर्बनमें खरीदा है । अगर परिषद परवाना देनेसे इनकार कर दे तो मुझे अपनी अन्दरूनी हलकोंकी दूकाने बन्द नहीं करनी पड़ेगी। मेरी पत्नी पांच माहसे नेटालमें है । मेरा विवाह ८ वर्ष पूर्व भारतमें हुआ था और उसके बाद भी मैंने भारतकी यात्रा की है।

अब्दुल कादिरको गवाही के लिए बुलाया गया। वे मुहम्मद कासिम ऐंड कम्पनी नामकी पेढ़ीके व्यवस्थापक- साझेदार हैं । यह कम्पनी उस मकानफी मालिक है, जिसके लिए परवानेकी अर्जी दी गई है । अब्दुल कादिरने कहा कि किराया १० पौंड तय किया गया है । पर इसके अलावा है । इस दूकानके लिए पहले परवाना रह चुका है। डर्बनमें मेरी तीन या चार जायदादें हैं। उनकी कीमत १८,००० और २०,००० पौंडके बीच है। इन जायदादोंका अधिकतर हिस्सा फिरायेपर दिया जाता है। अगर उस्मानको परवाना न मिला तो मुझे उस खास दूकानके किरायेकी हानि होगी। मैं अर्जदारको लम्बे अरसेसे जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि वह एक अच्छा किरायेदार होगा।

सके आगे, अर्जदारकी प्रतिष्ठाके बारे में एक अन्य भारतीय व्यापारीने गवाही दी।

श्री गांधीने कहा कि पिछली बार जब उन्होंने परिषदके सामने दलीलें की थीं तब, दुर्भाग्यवश, वे परिषदको यह नहीं अँचा सके थे कि मकान-मालिकके हितोंका खयाल किया जाना चाहिए। उस दिन मुहम्मद कासिम ऐंड कम्पनीके व्यवस्थापक-साझेदारने परिषदको बताया था कि उन्हें उस दूकानके लिए जो किरायेदार मिल सकते हैं उनमें वर्तमान अर्जदार सबसे अच्छा है। और यह कि, उनके पास १८,००० पौंडकी जायदाद है, जिसका ज्यादातर हिस्सा अर्जदार जैसे लोगोंको किराये पर दिया जाता है। उन्होंने आगे कहा था कि अगर अर्जदारको परवाना न दिया गया तो उन्हें अपनी दूकानके लिए कोई किरायेदार न मिल सकेगा। स्पष्ट है कि, मकान-मालिकके हितोंका खयाल होना ही चाहिए। श्री अब्दुल कादिर नगरके उतने ही अच्छे करदाता हैं, जितना कि कोई भी दूसरा व्यक्ति । और उनकी आवाज परिषदको सुननी ही चाहिए। अब्दुल कादिरको अर्जदार एक ऐसा किरायेदार मिला है, जिसे वे लम्बे अरसेसे जानते हैं। और अगर परवाना देनेसे इनकार किया गया तो मकान-मालिकको तकलीफ होगी। मकान केवल दूकानके लायक है और उसे किसी दूसरे प्रयोजनके लिए किरायेपर उठाना मकान-मालिकके लिए सम्भव न होगा। इस बातकी गवाही पेश की जा चुकी है कि पहले उस दूकानके लिए परवाना जारी रहा है। और श्री मैकविलियम ने, जो एक बिलकुल बेलाग गवाह थे, कहा है कि दूकान साफ-सुथरी और शोभास्पद है। इन परिस्थितियोंमें, उन्होंने आशा व्यक्त की, परिषद मकान-मालिकके हितोंको उचित महत्त्व देगी। जहाँतक स्वयं अर्जदारका सम्बन्ध है, प्रमाण पेश किया जा चुका है कि उसकी गवाही सही है और वह डर्बनमें मकान रखनेका खर्च निकालने के लिए यहाँ कुछ व्यापार करना चाहता है। अर्जदार पूर्णतः शिष्ट, इज्जतदार और अपने व्यवहारमें खरा व्यक्ति है। वह अपनी बातें समझानेके लिए अंग्रेजीमें काफी बातचीत कर सकता है और अपना हिसाब अंग्रेजीमें रख सकता है। उसकी हिसाबकी किताबें पहले मंजूर की जा चुकी हैं और उनका [गांधीजीका] खयाल था कि परिषद मंजूर करेगी, अर्जदार जाँच में बहुत खरा उतरा है। दूकान या अर्जदार किसीके बारेमें रंच-मात्र भी आपत्ति नहीं हो सकती। परवाना-अधिकारीको अपने कारणोंमें जो-कुछ बताना अच्छा लगा है, उसके अलावा अर्जदारमें और कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है और, परिषदके प्रति पूरे सम्मानके साथ

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