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मुसीबतोंके फायदे

प्रगतिमें रुकावटें डालेगा। ब्रिटिश भारतीयोंके लिए तो दक्षिण आफ्रिका जगन्नाथपुरी[१]की तरह होना चाहिए, जहाँ सारे भेदभाव भुला दिये जाते हैं और सब बराबरीके बन जाते हैं । यहाँपर हम तमिल, कलकत्तावाले, हिन्दू या मुसलमान, ब्राह्मण या बनिया नहीं हैं -- न होना चाहिए। हम तो यहाँ सीधे-सादे केवल ब्रिटिश भारतीय हैं। और इसी हैसियतसे हमें साथ-साथ डूबना या तैरना चाहिए। कोई इनकार नहीं करेगा कि इन सबके स्वार्थ हर तरह एक हैं। इसलिए हमारा स्पष्ट कर्तव्य यह है कि इन सब भेदभावोंको हम भुला दें। यह सबसे पहला और जरूरी कदम है। हम यह भी जानते हैं कि इस दिशामें हमारे लोगोंने बहुत भारी प्रगति की है । परन्तु हमारी मुसीबतोंसे सामान्य शिक्षा ग्रहण करनेका वक्तव्य इस चेतावनीके बिना अधूरा रहेगा ।

प्रत्येक भारतवासीका यह भी कर्तव्य है कि वह ऐसा न समझे कि अपने और अपने परिवारके खाने-पह्नने भरके लिए कमा लिया तो सब कुछ कर लिया। उसे अपने समाजके कल्याणके लिए दिल खोलकर धन देनेके लिए भी तैयार रहना चाहिए। और हम जानते हैं कि इस विषयमें भी दक्षिण आफ्रिकाका हमारा सारा समाज अपने कर्तव्यमें एकदम चूका नहीं है । परन्तु साथ ही हम यह भी जरूर कहेंगे कि वह इससे बहुत अधिक कर सकता था ।

साहस और धीरज ऐसे गुण हैं जिनकी कठिन परिस्थितियोंमें आ पड़नेपर बड़ी जरूरत होती है। पिछली लड़ाईमें दक्षिण आफ्रिकाके अंग्रेजोंमें इन गुणोंका चरम विकास देखनेका स्वर्ण अवसर हमें मिला था । लेडीस्मिथकी घेराबन्दी और बचावका इतिहास अपार साहस और अटूट धीरजके उदाहरणके रूपमें सदा याद किया जायेगा । इस लड़ाईमें जिन भारतीयोंने घायलोंको उठानेका काम किया था उन्होंने कोलेंजो और स्पिअनकॉपके युद्धोंमें जो कुछ देखा, उसे वे कभी नहीं भुला सकेंगे। संख्यामें कम होने और बार-बार पीछे हटनेपर भी झुकनेका कोई नाम नहीं लेता था। एक बार खुद जनरल बुलरको लगने लगा कि अब लेडीस्मिथको बचाना सम्भव नहीं है । किन्तु संसार जानता है कि कन्दहारके विजेताका तारसे यह सन्देश आया कि जबतक सेनापति बुलरके पास एक भी आदमी बचेगा वे हार नहीं मानेंगे। और इसका जो महान् परिणाम हुआ उसे हम सब जानते हैं। हमारा संघर्ष इतना कठिन नहीं है; और न उसके विरुद्ध बढ़नेमें इतनी वीरताकी जरूरत है । परन्तु फिर भी साहस और धीरजके सबक उससे मिलते हैं, जो हमें सीखने चाहिए। यदि लेडीस्मिथमें घिरे हुए मुट्ठी भर लोगोंको बचानेके लिए धन, जन और समयके बलिदानका कोई हिसाब नहीं लगाया गया, क्योंकि वह ब्रिटिश साम्राज्यकी इज्जतका सवाल था, तो क्या जब हम अपनी आजादीकी लड़ाईमें लगे हैं, हमें भी उसी प्रकार सोचकर इस नतीजेपर नहीं पहुँचना चाहिए कि इन तात्कालिक मुसीबतोंको पार करनेके लिए हमें भी ऐसे ही साहस और धीरजका परिचय देना है ? हमें भूलना नहीं चाहिए कि मनुष्यकी सच्ची परीक्षा विपत्तिमें ही होती है और घाव रोने-धोनेसे कभी नहीं भरा करते ।

परन्तु हमें कुछ और भी चाहिए। एक राष्ट्रकी हैसियतसे भौतिक चीजोंको तात्त्विक दृष्टिसे तुच्छ समझना और जीवनमें दैनिक सुविधाओंका कोई खयाल न करना हमारा स्वभाव हो सकता है । ईसाई धर्मप्रचारक तो इसे हमपर आरोपकी तरह मढ़ते हैं। ऐसी वृत्तिके प्रति हमारे मनमें अपार श्रद्धा है । परन्तु दक्षिण आफ्रिकामें यह वृत्ति रखना उचित नहीं होगा । जो लोग भौतिक लाभके लिए यत्नशील नहीं हैं उनके लिए निःसन्देह यह वृत्ति प्रशंसाके योग्य

  1. उड़ीसाका एक नगर जो श्री जगन्नाथके मन्दिरके लिए प्रसिद्ध है । वहाँ जातीय भेदभावोंको नहीं माना जाता ।