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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है । परन्तु जो अपने आपको सम्पत्तिशाली बनानेके लिए एड़ी-चोटीका पसीना एक कर देते हैं उनके लिए यह वृत्ति मिथ्याचार कहलायेगी। हमारा खयाल है कि अपनी माली हालतको सुधारनेके विचारको छोड़ किसी अन्य उद्देश्यसे दक्षिण आफ्रिकामें आनेवाले भारतीयोंकी संख्या बहुत बड़ी नहीं है । ऐसे लोगोंके लिए तो तत्त्वतः यही उचित है कि वे शेष समाजके साथ होकर अपनी आयके अनुपातमें खर्च करने को तैयार हो जायें। तब भारतीयोंके खिलाफ कोई यह आरोप नहीं लगा सकेगा कि उनका तो कोई खर्च ही नहीं है । परन्तु इसका अर्थ कोई यह न करे कि हम भारतीयोंको भोग-विलासमें डूब जानेकी सलाह दे रहे हैं। हरगिज नहीं। हम तो केवल इतना कहना चाहते हैं, “जैसा देस वैसा भेस।" और फिर भी मन इन चीजोंसे अलिप्त रहे । अगर ऐसी सुख-सुविधाएँ हम प्राप्त कर सकते हैं तो ठीक है । नहीं कर सकते तो भी ठीक है ।

परन्तु जो कौम समझती है कि दूसरे उसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं उसके लिए सबसे अधिक जरूरत तो प्रेम और उदारताके गुणोंकी है। क्योंकि सब जानते हैं कि मनुष्य आखिर अपनी परिस्थितियोंका गुलाम है । अतः परिस्थितिवश वह बिलकुल अनजाने ऐसी बातें करता रहता है जो अनुचित हैं। तब क्या हमारे लिए यह उचित नहीं है कि हम उनके बारेमें कोई निर्णय करते समय उदारतासे काम लें ? हम एक ऐसे राष्ट्रके लोग हैं, जिसमें धर्म-चिन्तन बहुत होता है और जिसमें लोग बदला न लेने तथा बुराईका जवाब भलाईसे देनेके सिद्धान्तपर निष्ठा रखते हैं । हम तो यहाँतक मानते हैं कि हम अपने विचारोंसे उनके कर्मोपर भी रंग चढ़ा सकते हैं, जिनका हम विचार करते हैं। अपने दैनिक जीवनमें हम प्रायः इसके उदाहरण देखते हैं । एक आदमी कोई बड़ा जुर्म करता है तो उसका चेहरा इस तरह बदल जाता है, मानो उसपर उस कुकर्मकी छाप लग गई हो। इसी प्रकार अगर कोई बड़ा पुण्य करता है तो उसके चेहरेपर दूसरे प्रकारका शुभ प्रभाव अंकित हो जाता है । इस तरह मनुष्य अपने कार्योंसे लोगोंको अपनी तरफ आकर्षित करता हुआ या दूर हटाता हुआ पाया गया है। इसलिए हम अपना यह परम कर्तव्य समझें कि हमारे खयालसे जो हमारे साथ बुरा व्यवहार भी करते हों उनके बारेमें हम बुरे विचार अपने दिलोंमें न आने दें। जो हमारे साथ भलाई करते हैं उनके साथ अगर हम भलाई करें तो इसमें कौन बड़े सद्गुणकी बात है ? इतना तो कुकर्मी लोग भी करते हैं। हाँ, विरोधीके प्रति भलाई करें तो जरूर कुछ बात हुई। अगर यह सीधी-सी बात हम ध्यानमें रखें तो हमें इतनी जल्दी सफलता मिल सकती है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इस लेखमें हमने जिन मुद्दोंका चलते-चलते जिक्रमात्र किया है, हमें आशा है कि उनमेंसे हरएकपर हम आगे अधिक विस्तारसे विचार कर सकेंगे। अभी तो हम अपने देशभाइयोंसे यही प्रार्थना पर्याप्त समझते हैं कि जो कुछ हमने ऊपर कहा है उसपर वे विचार करें और सदा सावधान रहें; नहीं तो हम तूफानके बीचमें हैं, किस क्षण कोई बड़ी लहर आकर हमें अपने अन्दर समा लेगी, इसका कोई ठिकाना नहीं। उस समय यदि हम कुछ करना चाहें तो उसके लिए समय नहीं रहेगा । {{left[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-८-१९०३}}