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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भाग-दौड़में नहीं है । मृत व्यक्ति भुला दिये जायेंगे, और पेरिस थोड़े ही समय बाद फिर अपने नित्य आनन्द-उल्लासमय रूपको इस तरह धारण कर लेगा मानो कुछ हुआ ही न हो । परन्तु यदि इस आकस्मिक दुर्घटनापर -- अगर इसे आकस्मिक ही कहा जाये -- कोई गहराईसे विचार करेगा तो उसे यह अनुभव हुए बिना नहीं रह सकता कि इस सारे वैभव और बाहरी चकाचौंधके पीछे एक बहुत बड़ी वास्तविकता है, जिसे लोग एकदम भूले हुए हैं। हमें तो इसका अर्थ बिलकुल साफ-साफ दिखाई देता है कि हम सबको, वर्तमानको केवल भविष्यकी तैयारी समझकर जीना चाहिए, जो इससे बहुत अधिक निश्चित और बहुत अधिक सत्य है। यह सभ्यता जिस चीजको स्थायी और शाश्वत बताकर हमारे सामने पेश करती है, वह उसे जरा भी शाश्वत और स्थिर नहीं बना सकता जो अपने आपमें अशाश्वत और अस्थिर है । और जब हम इसपर विचार करने लगते हैं तब विज्ञानके आश्चर्यजनक शोध और आविष्कार -- यद्यपि वे अपने आपमें अच्छे हैं -- कुल मिलाकर व्यर्थकी डींगें साबित होते हैं। संघर्षमें पड़ी हुई मानवजातिको वे कोई ठोस चीज नहीं दे पाते। इन घटनाओंको देखकर मनुष्यको सान्त्वना, केवल सैद्धान्तिक विश्वाससे नहीं, बल्कि इस सत्यमें दृढ़ विश्वाससे मिल सकती है कि, वर्तमानसे परे जीवन और ईश्वरकी सत्ता है । और केवल वही वस्तु पाने और विकसित करने योग्य है, जिससे हम अपने सृजनकर्ताको पहचान सकें और अनुभव करें कि पृथ्वीपर हम केवल थोड़े समय रहनेके लिए ही आये हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-८-१९०३

३१४. आर्तनाद

ट्रान्सवालके लेफ्टिनेंट गवर्नर उपनिवेशके गवर्नर भी हैं और दक्षिण आफ्रिकाके उच्चायुक्त भी। क्या वे अपने कर्तव्योंके बीच नेटालमें पड़े उन ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंका आर्तनाद सुननेकी कृपा करेंगे जो अपने घर लौटनेकी इजाजत न पानेके कारण तीव्र वेदना सह रहे हैं। जिस संख्यामें ये मामले रोज हमारे ध्यानमें लाये जा रहे हैं वह गंभीर है । अगर श्रीमान इस रोकको जरा ढीला भी कर दें तो यह विशुद्ध जीव दयासे अधिक न होगी। हम पहले बता चुके हैं कि प्लेगके बारेमें ट्रान्सवाल सरकारकी नीतिमें सुसंगति नहीं है। वह सैकड़ों यूरोपीयोंको और हजारों काफिरोंको बगैर किसी रुकावटके नेटालसे ट्रान्सवाल हर हफ्ते आने देती है। गरीब भारतीय शरणार्थी ट्रान्सवालमें लौटनेके लिए इतने चिंतित हैं कि उन्होंने अपने खर्चेसे फ़ोक्सरस्टमें सूतकमें रहना स्वीकार कर लिया है, फिर भी ट्रान्सवाल सरकारने अभी- तक उनकी कोई सुनवाई नहीं की है। अभी-अभी ट्रान्सवाल सरकार भारतीयोंको नेटाल जाने और फिर नेटालसे ट्रान्सवाल लौटनेकी अनुमति देने लगी है। क्या ये लोग अपने साथ इस भयंकर बीमारीके कीटाणु ट्रान्सवाल नहीं ले जायेंगे, और वहाँ यह बीमारी नहीं फैलेगी ? प्रत्यक्ष ही सरकारको इनसे वह भय नहीं है । सरकारका ख़याल है कि दूसरे किसी वर्गके लोगोंकी अपेक्षा नेटालमें पड़े हुए भारतीय शरणार्थियोंमें कोई ऐसी खासियत है, जिससे दूसरोंकी अपेक्षा उन्हें प्लेग ज्यादा आसानीसे हो सकता है। सचमुच यह बहुत बड़ी ज्यादती है। किसी भी ब्रिटिश उपनिवेशमें ऐसा नहीं सुना गया। अगर यह रोक राजनीतिक है तो इसे स्वीकार कर लेना ईमानदारी होगी -- ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंसे कह देना चाहिए कि वे ट्रान्सवाल लौटनेकी