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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/४८९

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ट्रान्सवालमें भारतीय व्यापारिक परवाने


जैसा कि एक पहले पत्रमें और परमश्रेष्ठको दिये हुए मुद्रित प्रार्थनापत्र में कहा जा चुका निहित स्वार्थोका, यहाँ जो अर्थ है उसके अनुसार, लिहाज नहीं किया जा रहा है। जो सैकड़ों भारतीय युद्धसे पहले कानूनके विरुद्ध (अर्थात् परवाना बिना लिये) व्यापार कर रहे थे उन सबको नोटिस मिला है कि वे वर्षकी समाप्तितक बस्तियोंमें चले जायें, जिसके कारण भारतीय व्यापार पूर्णतया अस्त-व्यस्त हो गया है। इसके अलावा, एक ही पेढ़ीके सब साझेदारोंको परवाना नहीं दिया जाता; केवल ऐसे एक साझेदारको दिया जाता है जो उस समय देशमें मौजूद रहता है और अपने अन्य साझेदारोंके आनेकी प्रतीक्षा करता रहता है । उनको अपने व्यापारका स्थान भी विभिन्न जिलोंमें बदल लेनेकी इजाजत नहीं दी जाती। एक व्यक्तिका परवाना किसी दूसरेके नाम बदला भी नहीं जा सकता, जिसका फल यह होता है कि व्यापारीकी साख सर्वथा नष्ट हो जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रत्येक भारतीय व्यापारीको अन्तमें अपना व्यापार समेट कर बस्तियोंमें ले जाना पड़ेगा ।

ब्रिटिश राज्यमें, बोअर राज्यकी अपेक्षा अधिक कठोरतासे एशियाई-विरोधी कानूनोंपर अमल किया जा रहा है; इस शिकायतका जवाब देते हुए परमश्रेष्ठने लिखा है

(१) सरकार प्रत्येक नगरमें एशियाइयोंको रहनेके लिए विशेष स्थान दे रही है; और इन स्थानोंको चुनते हुए वह भरसक यत्न करती है कि ऐसे ही स्थान चुने जायें जो स्वास्थ्यकारक हों और जिनमें व्यापार करनेके लिए उपयुक्त अवसर भी मिल सके ।

(२) उसने घोषणा कर दी है कि जो एशियाई युद्धसे पहले व्यापारमें जम चुके थे उन्हें छेड़नेका उसका इरादा नहीं है और उनके परवाने फिर जारी कर दिये जायेंगे पिछली सरकारके राज्यमें इन सब लोगोंको जगह छोड़ देनेके नोटिस मिले थे ।

(३) उसका इरादा उच्च वर्गके एशियाइयोंको सब प्रकारके विशेष कानूनोंसे मुक्त रखने का है।

इनमें से पहली बातसे, अर्थात् प्रत्येक नगरमें पृथक् बस्तियाँ बना देनेसे, भारतीयोंको कोई सहायता नहीं मिलेगी; उन्होंने पिछले राज्यमें इनके विरुद्ध शिकायत की थी और उसमें वे सफल हो गये थे । यही कारण है कि कुछ शहरोंको छोड़कर पिछली ट्रान्सवाल-सरकार कोई बस्ती नहीं नियुक्त कर सकी थी। अब सरकार कोई बीस शहरोंमें बस्तियोंके लिए जगह चुन चुकी है। रही बात ऐसा स्वास्थ्यकारक स्थान चुननेकी जहाँ व्यापार करनेके उपयुक्त अवसर भी मिल सकें, इस विषय में जानकारीके बिना अधिक कुछ कहना कठिन है; परन्तु जो कुछ अबतक ज्ञात है वह बहुत आशाजनक नहीं है। ब्रिटिश भारतीयोंके प्रतिवाद करनेपर भी बारबर्टनकी वर्तमान बस्तीको परे हटाया जा रहा है; और यद्यपि नया स्थान बहुत दूर नहीं है, फिर भी यह कल्पना सुगमतासे की जा सकती है कि इस बस्तीके व्यापारियोंको परि- वर्तनके कारण कितनी अधिक हानि उठानी पड़ेगी ।

दूसरी बातके विषयमें सचाई यह है कि बोअर-राज्यमें, निहित अधिकारोंसे छेड़-छाड़ न करनेके इरादेकी घोषणा न की जानेपर भी, ब्रिटिश प्रतिनिधियोंकी कहा-सुनीके कारण युद्ध छिड़नेतक सभीकी रक्षा होती रही थी। जगह छोड़नेकी सूचनाओंकी कीमत कोई उस कागज जितनी भी नहीं समझता था, जिसपर कि वे लिखी हुई थीं (क्योंकि सूचनाएँ तो सभी भारतीय व्यापारियोंको बरसोंसे मिली हुई थीं, परन्तु उनपर अमल कभी नहीं किया जाता था ) । जब


१. देखिए प्रार्थना-पत्र : “ ट्रान्सवालके गवर्नरको, " जून ८, १९०३ ।