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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्होंने निवेदन किया कि, परवाना-अविकारीका उन भाषणोंसे कोई वास्ता नहीं था, जो अधिनियमके पास किये जाते समय विधान सभामें दिये गये थे। अधिनियमकी प्रस्तावनामें यह बतानेवाली कोई चीज नहीं है कि अधिनियमका मंशा यह है। उसमें तो सिर्फ यह कहा गया है कि थोक और फुटकर विक्रेताओंको परवाने देना विनियमित करना जरूरी है। वांछनीय या अवांछनीय व्यक्तियोंका कोई भेद उसमें नहीं किया गया। और, फिर भी, परवाना- अधिकारीने सरासर अपनी मर्यादाका उल्लंघन करके उन भाषणोंका हवाला दिया, जो अधि- नियमके पास होते समय दिये गये थे। वस्तुत:, उससे अपेक्षा तो यह थी कि अर्जीपर विचार करते समय वह न्यायान्यायकी भावनासे काम लेगा। परवाना-अधिकारीके लिए यह रास्ता अख्ति- यार करना बड़ी असाधारण बात थी और, श्री गांधीने आशा व्यक्त की कि, चूंकि परवाना- अधिकारीने, दिये हुए कारणोंसे, परवाना देना नामंजूर किया है, इसलिए परिषद उस निर्णयको उलट देगी। परवाना-अधिकारीने कहा है कि उसका विश्वास था, उसका यह मानना ठीक था कि अर्जदार अवांछनीय वर्गमें शामिल किया जायेगा। परन्तु, उसे ऐसा माननेका क्या अधिकार था ? श्री गांधीने कहा कि वे जानना चाहते हैं, अवांछनीय कौन है, और ऐसे व्यक्तिका वर्णन किस तरह किया जायेगा; और वे इस मुद्देपर उपनिवेश-मन्त्रीकी राय पेश करना चाहते है । उन्होंने श्री चेम्बरलेनके एक भाषणके कुछ अंश पढ़कर सुनाये। श्री चेम्बरलेन ने यह भाषण उपनिवेशोंके प्रधानमन्त्रियोंके सम्मेलनमें दिया था। उसमें उन्होंने कहा था कि हमें साम्राज्यकी परम्पराओंका खयाल रखना चाहिए, जिनमें रंगके आधारपर किसी प्रजातिके पक्ष या विपक्षमें कोई भेदभाव नहीं किया जाता। उन्होंने भारतीयोंकी सम्पत्ति तथा सभ्यताका, और संकटके समय उन्होंने साम्राज्यकी जो सेवाएँ की उनका भी जिक्र किया था। श्री चेम्बरलेनके कहने के अनुसार, आपको प्रवासियोंके आचरणका विचार करना है; और यह कि, कोई आदमी आपके रंगसे भिन्न रंगका होने के कारण ही अवांछनीय नहीं बन जाता, बल्कि इसलिए अवांछनीय होता है कि वह गन्दा है, या चरित्रहीन है, या कंगाल है, या उसमें कोई दूसरी आपत्तिजनक बात है। यह है, उपनिवेश-मन्त्रीके मतसे, अवांछनीय प्रवासी और श्री गांधी के मुअक्किलके खिलाफ ऐसी कोई आपत्ति पेश नहीं की गई। अर्जदारके खिलाफ उठाई गई एक- मात्र आपत्ति यह है, और इसे उपनिवेश-मन्त्री ने अमान्य कर दिया है, कि वह एक भारतीय है और, इसलिए, वह अवांछनीय लोगोंके वर्गमें शामिल होता है। श्री गांधीने आशा व्यक्त की कि परिषद इस कारणको मंजूर नहीं करेगी। परवाना-अधिकारीने इन परवानोंके नामंजूर किये जानेका एकमात्र कारण बता कर भारतीय समाजको बहुत कृतज्ञ बना लिया है। इस परिषद-भवनमें कहा गया है कि भारतीयोंपर आपत्ति उनके रंगके कारण या उनके भारतीय होने के कारण नहीं, बल्कि इस कारण की जाती है कि वे साफ-सुथरे तरीकेसे नहीं रहते। यह आपत्ति श्री गांधीके मुअक्किलके विरुद्ध नहीं उठायी जा सकती। उन्होंने कहा कि वे बताना चाहते हैं, अगर परिषदने यह परवाना देनेसे इनकार किया तो वह तमाम भारतीयोंको एक-बराबर करार दे देगी और उसके इस कामसे भारतीयोंको साफ-सुथरे तथा शोभास्पद मकानोंमें और हर तरहसे प्रतिष्ठित नागरिकोंकी भाँति रहने का प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। इन परवानोंके बारेमें की जानेवाली प्रत्येक बात बाहर फैलती है और अगर मेरे मुअक्किल जैसे आदमीको परवाना देनेसे इनकार किया गया तो भारतीय कहेंगे कि नगर-परिषद यह नहीं चाहती कि वे साफ-सुथरे ढंगसे और ईमानदारीके साथ रहें, बल्कि यह चाहती है कि वे किसी भी तरह रह लें। परिषदको भारतीय आबादी में इस तरहकी भावना पैदा नहीं होने देनी चाहिए। पहले एक मौकेपर कहा गया था कि यह जरूरी है कि इन परवानोंको बढ़ाया न जाये। परन्तु प्रस्तुत मामले में

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