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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

विशेष संवाददाताने प्रश्नको सुलझानेके बारेमें जो सुझाव दिया है उससे भी प्रकट होता है कि उन्होंने जल्दबाजीमें अपना निर्णय कर लिया है। सारे सबूतके विपरीत वे छोटे दुकानदारों और फेरीवालोंकी निन्दा करते हैं और भारतीयोंको बस्तियोंमें जबरदस्ती रहनेके लिए भेजनेमें उन्हें कोई दोष नहीं दिखाई देता । वे इसके समर्थनमें वही अस्वच्छतावाला आरोप पेश करते हैं, जिसको सुनते-सुनते हम थक गये हैं। उन्होंने भूलसे यह भी समझ रखा है कि नये नियम ( अर्थात् बाजार-सम्बन्धी सूचना[१]) केवल भावी आगन्तुकोंपर ही लागू होंगे । वे इस बातको भूल ही जाते हैं कि गैर-शरणार्थी भारतीयोंका प्रवेश तो कतई बन्द है और यह भी कि केवल उन्हींके परवाने नये किये जायेंगे, जिनके पास लड़ाईके पहलेसे वे थे ।

फिर भी सारा लेख दिलचस्प है। स्पष्ट ही लेखक असहानुभूतिशील नहीं है । लेखके प्रारम्भमें जो अच्छे शब्द कहे गये हैं उन्हें हमने जानबूझकर इसलिए उद्धृत नहीं किया कि वे तो अच्छे हैं ही। गलत कथनोंका हमने केवल इसलिए जिक्र किया कि उन्हें सुधारनेकी जरूरत है। और जब वे किसी प्रतिष्ठित अखबारमें छपें, जो हजारों आदमियोंके हाथोंमें पहुँचता हो और जिसकी बातोंको लोग आँखें मूंदकर सच मान लेते हों, तब उनको तो सुधारनेकी और भी अधिक जरूरत रहती है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-८-१९०३

३१९. लॉर्ड मिलनरका खरीता

इस अंकमें हमें श्री चेम्बरलेनके नाम लॉर्ड मिलनरका पूरा खरीता छापनेका सुयोग मिला है । रैंड डेली मेलमें छपे तारका हम पहले जिक्र कर चुके हैं। उसमें लॉर्ड मिलनरके खरीतेका हवाला आया है। यह दस्तावेज बड़े मतलबका है और दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंके लिए कुछ हदतक आशाजनक भी है। यह एकदम बता देता है, ट्रान्सवालकी वर्तमान सरकारसे किन बातोंमें डरकी सम्भावना है और किन बातोंमें आशा की जा सकती है। सारे खरीतेसे यह प्रकट होता है कि परमश्रेष्ठके दिलमें बहुत सहानुभूति है और उनके इरादे अच्छे हैं। और उसमें जहाँ शिकायतके लिए अच्छा आधार है, वहाँ असली कारण खुद लॉर्ड मिलनर नहीं, बल्कि वे लोग हैं जिन्होंने उनके सामने तथ्य पेश किये हैं । और शायद वे भी न हों, क्योंकि दफ्तरके अत्यधिक कामके कारण वे परमश्रेष्ठके सामने सही-सही बातें पेश ही न कर पाये हों । अतः हमारा कर्तव्य यह है कि हम परमश्रेष्ठका ध्यान इन बातोंकी तरफ दिलायें। लॉर्ड मिलनर कहते हैं :

वह (सरकार) इस बातकी चिन्तामें है कि वह इस काम (कानूनके अमल) को देशमें पहलेसे बसे भारतीयोंका अधिकतम विचार करके और निहित स्वार्थोंका -- जहाँ इन्हें कानूनके विरुद्ध भी विकसित होने दिया गया हो -- सबसे अधिक लिहाज रखते हुए करे।

हम पहले बता चुके हैं कि बाजार-सम्बन्धी सूचना इस बातको प्रमाणित नहीं करती, क्योंकि लड़ाईसे पहले जो लोग बगैर परवानेके और इस प्रकार, कानूनके विरुद्ध व्यापार कर रहे थे, उन्हें सूचनाएँ मिल चुकी हैं कि वे इस वर्षके अन्ततक बस्तियोंमें रहनेके लिए चले जायें ।

  1. देखिए "दक्षिण अफ्रीकाके ब्रिटिश भारतीय," अप्रैल १२, १९०३ का सहपत्र |