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लॉर्ड मिलनरका खरीता

परमश्रेष्ठ आगे लिखते हैं :

निःसन्देह कुछ मामलोंमें वे कानून, जो अप्रचलित हो गये थे या पूरी तरह असमर्थनीय थे, बिलकुल हटा दिये गये हैं। इसमें इस बातका ध्यान रखा गया है कि इससे किसीको असुविधा न हो ।

यह जानना रुचिकर होगा कि वे क्या कानून थे जो हटा दिये गये हैं ।

परमश्रेष्ठ लिखते हैं :

लड़ाईके पहले जो एशियाई लोग उपनिवेशमें थे, केवल उन्हींका सवाल होता तो महामहिमकी सरकारके मनके लायक नये कानून बननेतक हम राह देख सकते थे । परन्तु वहाँ तो नये-नये आनेवालोंका ताँता लगा था और वे व्यापार करनेके परवाने भी माँगते रहते थे -- ऐसी दशामें एकदम हाथपर हाथ धरे बैठे रहना असम्भव हो गया था ।

फिर, हम कहते हैं कि कुछ लोगोंको छोड़कर, जिनको शुरू-शुरूमें आने दिया गया था और जिनकी गिनती उँगलियोंपर की जा सकती है, नये आदमियोंको अभीतक उपनिवेशमें आने ही नहीं दिया गया है। ब्रिटिश भारतीयोंने तो अभीतक पुराने व्यापारियोंके हकमें कोरे न्यायकी माँग और उन्हें परवाने न दिये जानेकी शिकायत ही की है। इसलिए "एकदम हाथपर हाथ धरे रहने" की नीति नया कानून बननेतक बखूबी जारी रखी जा सकती थी । और लॉर्ड मिलनरके इस कथनके प्रकाशमें तो ३ पौंडके करको लागू करना भी अगर अनावश्यक नहीं तो प्रत्यक्ष रूपसे असमर्थनीय ही है ।

परमश्रेष्ठ कहते हैं : "हम नहीं चाहते कि प्रतिष्ठित ब्रिटिश भारतीयों अथवा सुसभ्य एशियाइयोंपर साधारण रूपसे कोई निर्योग्यतायें लगाई जायें ।”

ब्रिटिश भारतीयोंको दूसरे एशियाइयोंसे अलग करने और ब्रिटिश प्रजाजनके नाते उनके रुतबेको स्वीकार करनेके लिए हम परमश्रेष्ठके आभारी हैं। रैंड डेली मेलके तारपर टिप्पणी करते समय हम बता चुके हैं कि आज तो सारे भारतीय, चाहे वे प्रतिष्ठित हों या साधारण, एशियाइयोंपर लगी तमाम निर्योग्यताओंके नीचे पिसे जा रहे हैं। बस, अगर कहीं कोई थोड़ी छूट हो जाती है तो वह निवासके बारेमें है । परन्तु केवल उतनी ही ।

लॉर्ड मिलनर आगे कहते हैं :

सबसे पहले हम यह देखेंगे कि एशियाइयोंके लिए अलग बस्तियोंकी जगहें निश्चित होनेके बाद एशियाइयों द्वारा उनमें रहनेका विरोध जारी रहता है या नहीं।

अगर अपने देशभाइयोंके मनोभावोंका हमें ठीक-ठीक पता है, तो हमारा खयाल है कि जबतक कानूनके अन्दर उनको जबरदस्ती बसानेका डंक बना रहेगा, यह विरोध कम होनेवाला नहीं है। डॉ० पोर्टरने जोहानिसबर्गकी भारतीय बस्तीका जो काल्पनिक चित्र खींचा है उसका परमश्रेष्ठने उपयोग किया है। हमें इससे आश्चर्य नहीं हुआ । परन्तु हम परमश्रेष्ठसे निवेदन करेंगे कि वे डॉ० मैरेस, डॉ० जॉन्स्टन और कतिपय अन्य अधिकारी पुरुषों[१]के विवरणोंको पढ़ें जिन्होंने अपनी राय डॉ० पोर्टरके प्रतिकूल दी है । यद्यपि डॉ० पोर्टर स्वास्थ्य विभागके अधिकारी हैं, तथापि हमने जिन पुरुषोंके नाम अभी बताये हैं उनकी राय अधिक वजन रखती है, क्योंकि उनका अनुभव अधिक और परिपक्व है ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २७-८-१९०३}}

  1. देखिए "साक्षी: लॉर्ड मिलनरके अस्वच्छताके आरोपके विरुद्ध,” १३-८-१९०३ ।