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३२०. भारतीय प्रश्नपर अधिक प्रकाश

ट्रान्सवालके भारतीयोंके प्रश्नपर उपनिवेश कार्यालयने संसदके लिए एक कागज जारी किया है, जिसके बारेमें रैंड डेली एक्स्प्रेसके सम्वाददाताने एक लम्बा तार भेजा है। हम उसकी नकल इसी अंकमें अन्यत्र देनेकी धृष्टता कर रहे हैं। हम जानते हैं कि सरकारी कागजोंपर -- खासकर जब हमारे सामने उनका बहुत अधूरा और संक्षिप्त रूप हो -- कुछ लिखना बहुत मुश्किल है । परन्तु चूंकि उस पूरे कागजको दक्षिण आफ्रिका पहुँचनेमें कुछ समय लगेगा और चूंकि वह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषयसे सम्बन्ध रखता है, इसलिए यह मानकर कि उस लेखका इस तारमें दिया गया संक्षेप प्रामाणिक है, हम उसपर अपने कुछ विचार प्रकट करना चाहते हैं । तारके अनुसार बाजार-सम्बन्धी सूचना द्वारा "तीन अत्यंत महत्त्वपूर्ण बातोंमें" एशियाइयोंका खयाल रखा गया है, जो पिछली हुकूमतने नहीं रखा था । एक तो यह कि "ये बस्तियाँ ऐसी जगहोंपर बसाई जा रही हैं, जो स्वास्थ्यप्रद हैं और जहाँ व्यापारकी समुचित अनुकूलताएँ हैं ।" दूसरी यह कि "जिन एशियाइयोंका व्यापार लड़ाईके पहले जम गया था उन्हें नहीं छेड़ा जायेगा ।" और तीसरी यह कि "सारा विशेष कानून उच्च वर्गके लोगोंपर लागू नहीं किया जायेगा ।"

पहलीके बारेमें हम अभी कुछ नहीं कहना चाहते, क्योंकि इन तमाम बस्तियोंके लिए कैसी और कहाँ जगहें निश्चित की गई हैं, इसका हमें पता नहीं है ।

जहाँतक दूसरी और तीसरी बातोंका सम्बन्ध है, वे एकदम भ्रमोत्पादक हैं । हम निश्चित रूपसे जानते हैं कि बाजार-सम्बन्धी सूचना और उसपर दिये गये निर्णयके अनुसार नये परवाने केवल उन्हींको दिये जा रहे हैं जिनके पास वे लड़ाईके पहले थे; उनको नहीं, जिनके पास परवाने तो नहीं थे, किन्तु जिनका व्यापार लड़ाईके पहले जम चुका था । इससे तो बड़ा अन्तर पड़ जाता है। सैकड़ों ब्रिटिश भारतीयोंने परवानोंका शुल्क जमा करवा दिया था और उसके आधारपर वे व्यापार कर रहे थे; परन्तु उन्हें परवाने कभी नहीं दिये गये और इस बातको बोअर-सरकार खूब अच्छी तरह जानती थी । अब बाजार-सम्बन्धी सूचनाके अनुसार इन्हें व्यापार करनेका हक नहीं रहेगा। जहाँतक कानूनके लागू न करनेकी बात है, बाजार-सम्बन्धी सूचनाके अनुसार वह केवल निवास -- एकमात्र निवास -- तक ही सीमित है । वह उच्चवर्गके एशियाइयोंको विशेष कानूनके अमलसे मुक्त नहीं रखता । तब स्थिति यह बनती है कि बाजार-सम्बन्धी सूचनासे भारतीयोंको ऐसी कोई छूट नहीं मिलती जो उन्हें लड़ाईके पहले उपलब्ध नहीं थी; क्योंकि बस्तियोंमें रहनेके लिए उन्हें कभी मजबूर किया ही नहीं गया था। किसी भारतीयको व्यापारमें किसी प्रकारकी कोई कठिनाई नहीं थी, और चूँकि रहनेके बारेमें कोई जबरदस्ती थी ही नहीं, इसलिए स्वभावत: छूटका सवाल ही नहीं था ।

लॉर्ड मिलनरको ऐसा नहीं लगता कि नये कानूनके बारेमें कोई कठिनाई पैदा होगी । वह उसी तरहका होगा जैसा केप उपनिवेश और नेटालमें है । इस बातमें सरकार और भारतीय दोनों पूर्णतः एकमत हैं। इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे प्रतिबन्धक कानूनोंको भारतीय पसन्द करते या आवश्यक समझते हैं; किंतु उन्होंने अनिच्छापूर्वक एक अनिवार्य परिस्थितिको मानकर -- जबतक जातिभेदके आधारपर कोई विशेष और अपमानजनक प्रतिबन्ध उनपर नहीं लादे जाते तबतकके लिए -- सरकारके साथ यथासम्भव सहयोग करना स्वीकार कर लिया