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३२३. लॉर्ड सैलिसबरी[१]

लॉर्ड सैलिसबरीकी मृत्युने ब्रिटिश साम्राज्यसे एक ऐसे राजनीति-विशारदको उठा लिया जिसको सारे साम्राज्यमें प्रेम और आदरकी और, साम्राज्यके बाहर, भयकी दृष्टिसे देखा जाता था। स्व० लॉर्ड सैलिसबरीका जीवन साम्राज्यके हर सदस्यके लिए सीधे-सच्चेपन और उद्योगशीलताका प्रत्यक्ष पदार्थ पाठ था । जीवनमें जो भी अच्छे गुण मनुष्यको अपने अन्दर विकसित करने चाहिए, उनका भी वे नमूना थे । इसके अलावा किसी भी देशका धनिक समाज उन्हें अपने लिए एक आदर्श मान सकता है। इतिहास तो उन्हें महारानीके युगके एक महान् परराष्ट्र-मंत्रीके रूपमें सदा याद रखेगा। यूरोपके राष्ट्रोंमें उनका अपना एक विशेष स्थान था । इसका कारण था — परिस्थितिको पूरी तरहसे समझनेकी उनकी अद्भुत शक्ति और साम्राज्यकी महानताका सम्पूर्ण ज्ञान। वे अवसर-साधु नहीं थे और राजनीतिको उन्होंने लाभ कमानेका साधन कभी नहीं बनाया । इसलिए लोगोंकी शाबासीकी उन्होंने कभी परवाह नहीं की और अन्यायकी सदा निन्दा की — चाहे वह विरोधियोंकी तरफसे हुआ हो या उनके अपने दलके द्वारा। जब वे भारत-मंत्री थे तब लॉर्ड क्रेनबोर्नकी भाँति सही बात कहने में उन्होंने कभी संकोच नहीं किया । भारतकी गरीबीके बारेमें उन्होंने लिखा था :

भारतके मामलेमें यह हानि कहीं अधिक बढ़ जाती है। इस देशके राजस्वका बहुत बड़ा हिस्सा बाहर ले जाया जाता है, जिसका बदला उसे कुछ भी नहीं मिलता । अगर उसका खून निकालना ही है तो नश्तर ऐसी जगह लगाया जाना चाहिए, जहाँ अधिक खून इकट्ठा हो गया हो, या कमसे-कम जहाँ वह पर्याप्त मात्रामें तो हो, जहाँ वह पहले ही से कम हो ऐसी कमजोर जगहमें नहीं ।

यह वचन ऐतिहासिक महत्त्व पा गया है और अनेक सभाओंमें इसका हवाला दिया गया है । साम्राज्यकी नीतिके बारेमें उन्होंने कहा था :

संक्षेपमें हमारी नीति तो यह है कि हम शान्तिकी रक्षा करें और जनकार्य करते रहें। भारतमें उत्पादनकी साधन-सामग्री बहुत अधिक है। उसे अगर हम बढ़ा सकें, वहाँकी उपजाऊ जमीन और भारी जनसंख्याका उपयोग देशकी समृद्धि बढ़ानेमें कर सकें और अपने पड़ोसी राज्योंको (चाहे वे देशकी सीमाके अन्दर हों या बाहर) यह विश्वास दिला सकें कि हमने राज्योंपर अधिकार करने और साम्राज्यको बढ़ानेकी नीतिको — जिसके कारण हमारे प्रति लोगोंका अविश्वास बहुत बढ़ गया था और जगह-जगह उपद्रव होने लग गये थे — सदाके लिए छोड़ दिया है; अगर हम यह सब कर सकें और साथ ही अधीनस्थ प्रजाजनोंमें अंग्रेजी सभ्यता और अंग्रेजी शासन पद्धतिके वरदान फैला सकें एवं उन्हें वह शिक्षा-संस्कृति प्रदान कर सकें, जिनसे वे इन वरदानोंकी कद्र करें, इन्हें और भी फैलानेमें भाग लें और उन्हें सफल करें तो हम समझेंगे कि आजकी इस

  1. जीवन-काल : १८३०-१९०३ । दो बार ब्रिटेनके प्रधानमन्त्री रहे ।