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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विश्रामको तथा निश्चलताकी स्थितिका भी हमने अच्छेसे-अच्छा उपयोग कर लिया ।. . . अगर हम प्राप्त अवसरोंका अच्छेसे-अच्छा उपयोग कर सकें, अगर उस विशाल भूभागकी तथा उसमें बसनेवाले असंख्य लोगोंकी आर्थिक और नैतिक स्थिति सुधारनेमें हम अपनी सारी शक्ति लगा सकें तो हम अपने साम्राज्यकी नींवको इतनी मजबूत बना देंगे कि वह कभी हिल नहीं सकेगी।

नीचे दिया हुआ उद्धरण बहुत ही उपयुक्त है, जो श्री दादाभाई नौरोजीके महान् ग्रन्थ[१]में दिये उनके एक भाषणका अंश है और जो प्रकट करता है कि वे कितने साफ दिल आदमी थे:

भारतको जिन्होंने अच्छी तरहसे समझा है, ऐसे तमाम लोग इस बातमें एकमत हैं कि भारतमें अगर अनेक छोटे-छोटे किन्तु सुशासित देशी राज्य बने रहें तो यह वहाँकी जनताकी नैतिक और राजनीतिक उन्नति तथा विकासके लिए अत्यन्त लाभप्रद होगा । यह सच है कि जो हिंसा और गैर-कानूनी बातें देशी राजाओंके शासनमें पाई जाती हैं वे आपको ब्रिटिश शासनमें नहीं मिलेंगी। परन्तु ब्रिटिश शासनके अपने दोष अलग हैं। उनकी जड़में इतने बुरे उद्देश्य भले ही न हों, परन्तु उनके परिणाम कहीं अधिक भयंकर हैं। ब्रिटिश शासनमें परिपाटी-पालनकी वृत्ति है, एक प्रकारकी जड़ताभरी बड़ी लापरवाही है, जो शायद संगठनकी विशालताके कारण पैदा हो गई है, जिम्मेदारीका बहुत अधिक खयाल और सत्ताका अत्यधिक केन्द्रीकरण है। ये सब कारण हैं जिनके लिए कोई एक व्यक्ति जिम्मेदार नहीं बताया जा सकता; परन्तु इन सबके कारण शासनमें अत्यधिक ढिलाई पैदा हो जाती है। फिर इसके साथ अन्य स्वाभाविक कारण और परिस्थितियाँ मिल जाती हैं और इन सबका कुल मिलाकर परिणाम आज वहाँकी यह भयंकर दुर्दशा है।

पिछले बोअर-युद्धके नाजुक समयमें भी उन्होंने इसी साफ-दिलीका परिचय दिया था । इस मानव-संहारक युद्धके प्रारम्भमें जब एकके बाद एक संकट आने लगे तब ब्रिटेनके तमाम राजनीति-विशारदोंमें अकेले वे एक पुरुष थे, जिन्होंने खुले दिलसे स्वीकार किया कि इन संकटोंका निश्चित कारण ब्रिटिश राजनीतिज्ञोंकी भूलें थीं। साथ ही इतिहाससे उदाहरण दे-देकर वे यह भी बताते जाते थे कि ब्रिटेन जितने युद्धोंमें लड़ा उसने हर युद्धमें शुरू-शुरूमें ऐसी ही गम्भीर भूलें की थीं।


२० जुलाई १९०० को तो उन्होंने यहाँतक कह दिया कि :

भारतके साथ अधिक उदारता और बड़प्पनका व्यवहार करनेकी जरूरत है, क्योंकि और बातोंके साथ, उस देशके निवासी यहाँके लोगोंकी अपेक्षा कहीं अधिक पुरुषार्थी और कष्ट-सहिष्णु हैं ।

फिर, चीनकी चढ़ाईके समय खुद बाइबिल प्रचार सभा (प्रोपोगेशन ऑफ दी गॉस्पेल सोसाइटी) के मंचसे भी अप्रिय किन्तु हितकर सत्य कहकर सावधानीकी सूचना देनेका साहस अकेले उन्होंने ही दिखाया। इसमें उन्हें बुरा बनना पड़ा। परन्तु इसकी उन्होंने परवाह नहीं की ।

  1. “पावर्टी ऐंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया" (भारतमें गरीबी और अब्रिटिश शासन ), १९०१ ।