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३२५. ट्रान्सवालके परवाने

इंडियन ओपिनियनके पिछले अंकमें हमने लॉर्ड मिलनरका जो खरीता छापा था उसमें एक मुद्दा ऐसा है जिसपर खास तौरसे ध्यान देनेकी जरूरत है । परमश्रेष्ठ कहते हैं :

लड़ाईके दिनोंमें और शान्तिकी घोषणा हो जानेके बाद, नये आगन्तुकोंके नामबहुत बड़ी संख्यामें अस्थायी परवाने जारी कर दिये गये थे। इन परवानोंको ३१ दिसम्बर १९०३ तक फिर नया कर दिया गया है । परन्तु इनके मालिकोंको सावधान किया गया है कि उन्हें उस तारीखको इस प्रयोजनके लिए निश्चित सड़कों या बाजारोंमें चले जाना होगा ।

पहले यह बताया जा चुका है कि जारी किये गये परवानोंमें से एक भी "अस्थायी" नहीं था, और न वे नये आये लोगोंको दिये गये थे। फिर कोई नये आदमी ट्रान्सवालमें न तो लड़ाईके दरमियान प्रवेश पा सके हैं और न शान्तिकी घोषणा हो जानेके बाद । कमसे-कम व्यापारके परवाने तो किसीको भी नहीं मिले हैं। यह सिद्ध करनेमें रत्तीभर भी कठिनाई नहीं होगी कि जिनको परवाने दिये गये वे सब वास्तविक शरणार्थी थे, और यह कि, लड़ाईसे पहले वे ट्रान्सवालके अन्दर कहीं-न-कहीं व्यापार कर रहे थे। जिन ब्रिटिश अधिकारियोंने उनके नाम परवाने जारी किये उन्होंने जबानी या लिखित रूपमें कोई शर्तें उनके सामने नहीं रखीं । परवाने बिलकुल साधारण तरीकेसे जारी किये गये थे। यह पिछले वर्षके अन्ततककी बात है । जब श्री चेम्बरलेन दक्षिण आफ्रिका आये और भारतीय व्यापारियोंके खिलाफ आन्दोलन खड़ा किया गया, तब मजिस्ट्रेटोंने इस आशयकी सूचनाएँ जारी कीं कि ये परवाने अब नये नहीं किये जायेंगे। खुद सरकारने इन सूचनाओंको कोई महत्त्व नहीं दिया और ३१ दिसम्बर तकके लिए परवानोंकी मियादें बढ़ा दीं। इसीसे सिद्ध हो जाता है कि भारतीयोंके परवाने अस्थायी नहीं थे। जो भी हो, यह प्रश्न जिन-जिनपर तत्काल प्रभाव डालता है, उनके लिए तो अत्यन्त गम्भीर है। हमें ज्ञात हुआ है कि बहुतसे परवानेदार व्यापारी मानते रहे हैं कि ब्रिटिश शासनमें उनके अधिकार पूर्णतया सुरक्षित हैं, अतः उन्होंने भारी-भारी पूंजी लगाकर अपने भण्डार बना लिये हैं, इंग्लैंडसे बहुत भारी तादादमें माल मँगा लिया है और अच्छे-अच्छे सम्बन्ध भी कायम कर लिये हैं। उनसे यह अपेक्षा करना कि वे वर्षके अन्तमें उन बस्तियों या बाजारों में चले जायें, उन्हें बरबाद कर देना ही होगा। यही क्यों, एक ही सड़कपर एक जगह से दूसरी जगह दूकान ले जानेकी बात हो तो भी व्यापारका ककहरा जाननेवाला भी बता सकता है कि इसमें बहुत बड़ी हानि होती है। इसलिए बाजार एक स्थायी संस्था बननेवाले हों या न हों, नये अर्जदारोंको परवाने मिलें या नहीं भी मिलें, और मौजूदा कानूनके स्थानपर -- जिसे खुद लॉर्ड मिलनरने ब्रिटिशोंके लिए अशोभनीय बताया है -- नया कानून बन रहा है यह सच भी हो, तो भी इन गरीब व्यापारियोंको यह आश्वासन दिया जाना अत्यन्त इष्ट और आवश्यक है कि, उनके परवाने पूर्णतः सुरक्षित हैं। बाजार-सूचनाओंके बारेमें दो बातें बिलकुल साफ तौरपर सामने आती हैं। एक तो यह अस्थायी परवानोंवाली बात, और दूसरे यह फर्क ध्यानमें रखना कि लड़ाईके पहले जिन ब्रिटिश भारतीयोंके पास परवाने थे वे, और जो लड़ाईके पहले वगैर परवानोंके व्यापार कर रहे थे वे अलग-अलग हैं। भारतीयोंके पास अभी तीन प्रकारके