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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परवाने हैं : (एक) वे भारतीय, जो यद्यपि वास्तविक शरणार्थी हैं और लड़ाईके पहले व्यापार करते थे, जिन्हें ट्रान्सवालके उन जिलोंमें व्यापारके परवाने दे दिये गये हैं जहाँ लड़ाईसे पहले वे व्यापार नहीं करते थे और जिनके परवानोंको अस्थायी कहा जाता है; (दूसरे) वे भारतीय शरणार्थी जो लड़ाईके पहले बगैर परवानोंके, किन्तु ट्रान्सवालकी पुरानी सरकारकी जानकारीमें, उन्हीं जिलोंमें व्यापार करते थे जिन जिलोंमें वे आज व्यापार कर रहे हैं; और (तीसरे) वे ब्रिटिश भारतीय, जिनके पास लड़ाईके पहले परवाने थे और जो अब व्यापार कर रहे हैं। बाजार-सूचना केवल इस तीसरे वर्गके भारतीयोंको असंदिग्ध शब्दोंमें सुरक्षितता प्रदान करती है। शेष दो वर्ग अभी अपने आपको अत्यन्त अरक्षित अनुभव कर रहे हैं। किसीके भी परवाने अगर छिन गये तो उसका असर आजकी स्थितिमें सबपर एक-सा ही होगा, चाहे वे किसी वर्गके हों; क्योंकि आज तो सभीके पास परवाने हैं। इसके अलावा जहाँतक इनका सम्बन्ध है, सरकारके लिए यह कोई बहुत भारी महत्त्वकी बात नहीं है, परन्तु खुद व्यापारियोंके लिए तो यह प्रत्यक्ष जीवन-मरणका प्रश्न है। श्री चेम्बरलेनका ध्यान जब प्रिटोरियामें इस बातकी तरफ दिलाया गया तब उन्होंने इस बातको उपहासके साथ टरका दिया कि ब्रिटिश शासनमें कभी इन परवानोंको छेड़ा भी जा सकता है। इसलिए न्यायके आधारपर और उपनिवेश मंत्री द्वारा दिये गये वचनके बलपर हम सोचते हैं कि इन गरीबोंको, जिनकी गिनती उँगलियोंपर की जा सकती है, पूर्ण रक्षाका आश्वासन पानेका अधिकार है । हमें पूरी आशा है कि इस विषयमें उन्हें सरकार जरूर आवश्यक राहत देनेकी कृपा करेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-९-१९०३


३२६. भारतीय मजदूर और मॉरिशस

दक्षिण आफ्रिकामें मॉरिशस द्वीपका नाम हमेशा भारतीयोंके खिलाफ लिया जाता है । ऊपरसे देखकर आलोचना करनेवालोंने यह कहनेमें संकोच नहीं किया है कि भारतीयोंने मॉरिशसको बरबाद कर दिया है । परन्तु वे इस बातको भूल ही जाते हैं कि मॉरिशस आज जिस समृद्धिको प्राप्त हुआ है उसका कारण भारतीयोंकी उद्योगशीलता ही है। अगर भारतीय मजदूरोंके श्रमका लाभ उसे नहीं मिलता तो वह एक भयानक और निर्जन अरण्यमात्र होता । भारतीयोंके वहाँ पहुँचनेसे पहले कभी वह द्वीप इससे अधिक अच्छी हालतमें था भी, यह वे नहीं बता सकते । उस द्वीपमें धैर्यवान् भारतीय मेहनतकशोंकी योग्यताका यह एक बिना माँगा प्रमाण है :

टाइम्स ऑफ इंडियाने लिखा है कि मॉरिशसके धनपतियोंकी सभामें लॉर्ड स्टैनमोरने जो शब्द कहे थे, उन्हें दक्षिण आफ्रिकाके निवासी नोट कर लें। पिछले वर्ष मॉरिशसमें दुर्भाग्यसे इतना बड़ा संकट आया, जैसा वहाँके लोगोंकी याद में वहाँ पहले कभी न आया था । वहाँ जानवरोंमें प्लेगका भीषण प्रकोप हो गया, जिसके कारण वहाँकी श्वेत-जायदादोंके सारे नहीं तो अधिकांश बैल-खच्चर मर गये -- सो भी ऐसे समय जब फसलोंको ढोनेके लिए उनकी सबसे अधिक जरूरत थी। परन्तु लॉर्ड स्टैनमोर कहते हैं कि इस संकटने बता दिया कि अपने भारतीय मजदूरोंके रूपमें मॉरिशसके पास कितनी आश्चर्यजनक श्रमिक सेना थी। जो काम साधारणतः बैलों और खच्चरोंसे लिया जाता