पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७
प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको

न्यायिक व्याख्या उपनिवेशवासी ब्रिटिश भारतीयोंके खिलाफ की गई है। आगे उल्लिखित एक मामले में सम्राज्ञीकी न्याय-परिषद (प्रीवी कौंसिल) के न्यायाधीशोंने यही निर्णय दिया है कि उपर्युक्त कानूनके अनुसार, नगर-परिषद (टाउन कौंसिल) या नगर-निकाय (टाउन बोर्ड) के फैसलेके खिलाफ उपनिवेशके सर्वोच्च न्यायालयमें अपील नहीं की जा सकती । इस निर्णयसे तमाम भारतीय व्यापारियोंका कारोबार ठप्प हो गया है। वे आतंकसे जकड़ गये हैं और उनमें अरक्षाकी भावना और एक घबराहट प्रबल हो उठी है कि न जाने अगले वर्ष क्या होनेवाला है।

भारतीय समाज जिन मुसीबतोंसे गुजर रहा है वे बहुत-सी है। प्रवासी-प्रतिबन्धक अधि- नियमके अमलके बारेमें भी प्राथियोंने विरोध व्यक्त किया था, जो निष्फल रहा। वह बहुत कष्ट और सन्तापका कारण बन रहा है। हालमें सरकारने इस कानूनके अधीन कुछ नियम बनाये है। उनके अनुसार ऐसे हर व्यक्तिसे एक पौंड शुल्क माँगा जाता है, जो उक्त कानून द्वारा मढ़ी गई परीक्षाओंको उत्तीर्ण नहीं करता, और जो एक दिनसे लेकर छ: हफ्ते तक उपनिवेशमें रुकना चाहता है, या जो जहाजपर सवार होने के लिए उपनिवेशसे गुजरना चाहता है। जबकि इन नियमों और उपर्युक्त कानूनसे निकलनेवाली दूसरी बातोंके सम्बन्धमें एक प्रार्थना- पत्र तैयार किया जा रहा था, ठीक उसी समय सम्राज्ञीकी न्याय-परिषदका निर्णय बमगोलेकी तरह भारतीय समाजपर आ पड़ा। उसने भारतीय व्यापारियोंके भविष्यको इतना भयानक बना दिया कि उसके मुकाबलेमें और सब मुसीबतें फीकी पड़ गईं। इसलिए विक्रेता-परवाना अधिनियमको सबसे पहले हाथमें लेना बिलकुल जरूरी हो गया है।

अब तो सम्राज्ञी-सरकारके हस्तक्षेपसे जो-कुछ राहत मिल जाये उसमें ही नेटालवासी भारतीय व्यापारियोंकी आशा रह गई है। प्रार्थी सम्राज्ञीके सब देशोंमें वही अधिकार और विशेषाधिकार पानेका दावा करते हैं, जिनका उपभोग सम्राज्ञीके अन्य प्रजाजन करते हैं। इसका आधार १८५८ की घोषणा है। और नेटाल-उपनिवेशमें तो प्रार्थियोंके इस दावेका यह भी खास आधार है कि उन्होंने पहले जो प्रार्थनापत्र भेजे थे उनसे सम्बन्धित खरीतेमें आपके पूर्वा- धिकारीने कहा था: सम्राज्ञी सरकारकी इच्छा है कि सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाओंके साथ उनकी अन्य प्रजाओंकी बराबरीका व्यवहार किया जाये। इसके अलावा, प्रार्थियोंको भरोसा है, सम्राज्ञी सरकार नेटाल-उपनिवेशसे, जिसकी वर्तमान समृद्धिका श्रेय गिरमिटिया भारतीयोंको है, उपनिवेशवासी स्वतन्त्र भारतीयोंके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करानेकी कृपा करेगी।

सारे संसारमें, जहाँ-कहीं भी जरूरत हुई है, भारतीय सिपाही ग्रेट ब्रिटेनकी लड़ाई लड़ते आ रहे है। इसी तरह, भारतीय मजदूर उपनिवेश बसाने के लिए नये-नये क्षेत्र खोलते जा रहे हैं। अभी हालमें ही रायटरके एक तारमें बताया गया था कि रोडेशियाके वतनियोंको तालीम देनेके लिए भारतीय सैनिकोंको लाया जायेगा। क्या यह हो सकता है कि उन्हीं सैनिकों और मजदूरोंके देशभाइयोंको सम्राज्ञीके साम्राज्यके एक भागमें ईमानदारीके साथ जीविका कमानेकी इजाजत न हो?

और फिर भी, जैसाकि आगे कही हुई बातोंसे स्पष्ट हो जायेगा, नेटाल-उपनिवेशमें भारतीय व्यापारियोंको ईमानदारीके साथ जीविका उपाजित करनेका अधिकार न देनेका संगठित प्रयत्न किया जा रहा है। इतना ही नहीं, उन्हें उन अधिकारोंसे भी वंचित करनेका संगठित प्रयत्न किया जा रहा है, जिनका उपभोग वे वर्षोंसे करते आ रहे हैं। और जिस जरियेसे नेटालके यूरोपीय उपनिवेशी अपने इस ध्येयको पूरा करनेकी आशा करते हैं, वह है उपर्युक्त कानून ।

१.देखिए पृष्ठ ३४ ।

२. देखिए खण्ड १, पृष्ठ २०४ ।

"