पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२८
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

डर्बनकी नगर-परिषद उपनिवेशका सबसे मुख्य निगम (कारपोरेशन) है। उसमें ग्यारह सदस्य हैं। इनमें से एक सदस्य भारतीयोंका इकबाली और कट्टर विरोधी है। गत वर्षके आरम्भ में नादरी और कूरलैंड जहाजोंसे यात्रियोंके उतरने के विरुद्ध जो प्रदर्शन किया गया था उसमें उस सदस्यने एक अगुएका काम किया था। वह अपने अत्यन्त उग्र भाषणोंके लिए प्रसिद्ध हो गया था। वह अपने भारतीय-द्वेषको नगर-परिषदके अन्दर भी ले गया है। और अबतक उसने बराबर और व्यक्ति-विशेषोंका खयाल किये बिना भारतीयोंको व्यापारके परवाने देनेका विरोध किया है। चूंकि यूरोपीयोंके दो ही वर्ग है -- एक तो भारतीयोंका उग्र विरोधी और दूसरा उदासीन - इसलिए जब कभी भी भारतीयों-सम्बन्धी कोई विषय परिषदके सामने निर्णयके लिए आता है, तब आम तौरपर वही सदस्य विजयी होता है। कानूनके अनुसार नियुक्त परवाना अधिकारी निगमका स्थायी कर्मचारी है। इसलिए, प्राथियोंकी नम्र रायमें, परिषदके सदस्योंका थोड़ा-बहुत प्रभाव उसपर है ही। आगे चलकर एक मामलेका उल्लेख किया जानेवाला है। उसमें प्रथम उपन्यायाधीश सर वाल्टर रैगने, जो उस समय मुख्य न्यायाधीशके स्थानपर काम कर रहे थे, नगर-परिषदके स्थायी कर्मचारीके परवाना-अधिकारीके पदपर नियुक्त किये जाने के खतरेके बारेमें ये विचार व्यक्त किये हैं :

न्यायाधीशको सुझाया गया है कि इस तरह नियुक्त किये गये अधिकारीके मनमें कुछ हद तक पक्षपात तो होगा ही। कारण, वह नगर-परिषदके अधीन एक स्थायी कर्मचारी है और उसका नगर परिषदका विश्वासी होना अनिवार्य है। न्यायाधीश महोदय इस विषयका फैसला करनेको तैयार नहीं थे। परन्तु उन्होंने यह तो पूरी तरह से मान लिया कि परवाना-अधिकारी कोई ऐसा आदमी होना चाहिए जो न तो नगर- परिषदको सेवामें रहा हो और न नगर-परिषदका विश्वासी हो ( नेटाल विटनेस, मार्च ३१, १८९८)।

यह परवाना-अधिकारी परवानोंके अर्जदारोंकी आर्थिक स्थितिकी जाँच करता है; उनसे उनके माल, पूंजी आदिके बारेमें सवाल करता है; और आम तौरपर उनके खानगी मामलोंकी भी पूछताछ करता है। उसने एक नियम ही बना लिया है कि जिस भारतीयके पास डर्बन में व्यापार करनेका परवाना पहले नसीं रहा, उसे वह न दिया जाये। इन बातोंका उसे कोई खयाल नहीं होता कि उम्मीदवारके पास उपनिवेशके किसी अन्य स्थानमें व्यापार करनेका परवाना रहा है या नहीं, वह पुराना बाशिन्दा है या नया, अंग्रेजी जाननेवाला सुयोग्य व्यक्ति है या साधारण व्यापारी, और जिस मकानमें व्यापार करनेका परवाना मांगा जा रहा है वह हर तरहसे योग्य है या नहीं तथा पहले वहाँके लिए परवाना रहा है, या नहीं।

इस वर्षके आरम्भमें सोमनाथ महाराज नामके एक भारतीयने नगरमें फुटकर व्यापार करनेके परवाने के लिए अर्जी दी थी। उसकी अर्जी ले ली गई। परवाना-अधिकारीने उसकी स्थितिके बारे में उससे लम्बी जिरह भी की। उसके खिलाफ कोई बात नहीं पाई गई । वह जिस मकानमें व्यापार करना चाहता था उसके बारेमें सफाई-दारोगाने अनुकूल रिपोर्ट दी। उस मकानको एक भारतीय दूकानदार हाल ही में खाली करके जोहानिसबर्ग गया था। इस तरह, परवाना-अधिकारीको उसके या उस मकानके खिलाफ कोई बात ढूंढ़े न मिली तब उसने बिना कारण बताये ही उसकी अर्जी नामंजूर कर दी। मामलेकी अपील नगर-परिषदके सामने

२. देखिए, खण्ड २, पृष्ठ २११ तथा आगे।