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प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको

हुई। वहाँ यह साबित कर दिया गया कि अर्जदारने पाँच वर्ष तक गिरमिटियाके तौरपर उपनिवेशकी सेवा की है। वह तेरह वर्षसे स्वतंत्र भारतीयके रूपमें उपनिवेशमें रह रहा है। उसने अपने परिश्रमके बलपर ही व्यापारीकी हस्ती हासिल की है। उसके पास इसी उपनिवेशकी मूई नदीके क्षेत्रमें छ: वर्ष तक व्यापार करनेका परवाना रह चुका है। उसके पास ५० पौंड नकद पूंजी है; नगरमें उसके पास माफीकी जमीनका एक टुकड़ा है। उसका रहनेका मकान अलग और दूकानकी इच्छित जगहसे कुछ दूर है और उसने कानूनकी मांग पूरी करनेके लिए एक यूरोपीय हिसाब-नवीसको नियुक्त कर लिया है। तीन यूरोपीय व्यापारियोंने प्रमाणित किया कि वह इज्जतदार और ईमानदारीसे कारोबार करनेवाला व्यक्ति है। अर्जदारके वकीलने मांग की कि परवाना-अधिकारीने जिन कारणोंसे परवाना देनेसे इनकार किया है वे बताये जायें और अर्जी-सम्बन्धी कागजातकी नकल दी जाये। नगर-परिषदने इन दोनों अजियोंको नामंजूर कर दिया और परवाना-अधिकारीके निर्णयको बहाल रखा। इस निर्णयके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालयमें अपील दायर की गई। यह अपील फैसलेके न्यायान्यायके आधारपर नहीं की गई, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय इसके पहले ही बहुमतसे फैसला कर चुका था कि विक्रेता-परवाना विधेयकके कारण उसे न्यायान्यायके आधारपर अपीलें सुननेका हक नहीं है। बल्कि, वह इन अनिय- मितताओंके आधारपर की गई कि परवाना न देने के कारण बतानेसे इनकार किया गया, अर्जदारके वकीलको कागजातकी नकल नहीं दी गई और जबकि अपीलकी सुनाई हो रही थी उस समय परिषदके सदस्य टाउन-सॉलिसिटर, टाउन-क्लार्क तथा परवाना-अधिकारीके साथ एक एकान्त कमरे में गुप्त मन्त्रणाके लिए चले गये। सर्वोच्च न्यायालयने अपील सुनना मंजूर कर लिया, अपील करनेवालेके पक्षको मंजूर करके नगर परिषदकी कार्रवाईको रद कर दिया और नगर परिषदको फरियादीका खर्च भरने तथा मामलेकी सुनवाई फिरसे करनेका आदेश दिया। फैसला देते हुए स्थानापन्न मुख्य न्यायाधीशने कहा :

इस मामलेमें जो बात साफ गलत महसूस होती है वह है कि कागजातको नकल नहीं दी गई। फरियादीने परिषदको अर्जी देकर कागजातकी नकल देने और परवाना देनेसे इनकार करने के कारण बतानेकी माँग की थी। अर्जी अनुचित बिलकुल नहीं थी। न्यायके हकमें उसे मंजूर कर लिया जाना चाहिए था। परन्तु उसे नामंजूर कर दिया गया। और जब फरियादीका वकील परिषदके सामने आया, वह कागजातके बारेमें बिल- कुल अनभिज्ञ था और उसे पता नहीं था कि परवाना-अधिकारीके मनमें क्या बात चल रही है। ... . उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि इस मामले में नगर-परिषदको कार्रवाई अत्या- चारपूर्ण थी। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि दोनों अजियोंको नामंजूर करनेकी कार्र- वाई अन्यायमूलक और अनुचित थी। (टाइम्स आफ नेटाल, मार्च ३०, १८९८)। न्यायाधीश श्री मेसनने कहा :

जिस कार्रवाईके खिलाफ अपीलकी गई है, वह नगर-परिषदके लिए लज्जाजनक है। और मुझे इस तरहकी कड़ी भाषाका प्रयोग करने में कोई संकोच नहीं है। इन परिस्थितियोंमें तो मैं मानता हूँ, यह कहना कि नगर-परिषदके सामने अपीलकी सुन- वाई हुई थी, शब्दोंका दुरुपयोग करना है। (टाइम्स आफ नेटाल, ३० मार्च, १८९८)।


१. देखिए “सोमनाथ महाराजका मुकदमा," मार्च २,१८९८ ।


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