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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

नगर-परिषद एक ब्रिटिश उपनिवेशकी है। और यह एक न्यायालयके रूपमें अपील सुननेके लिए बैठी थी। इसने अस्वच्छताको और बेईमानीके व्यापारको प्रोत्साहन दिया है। अब प्रार्थी भारतीय समाजके ज्यादा कमजोर सदस्योंको क्या उत्साह दिलाएँ ? वे ज्यादा कमजोर सदस्य कह सकते हैं: 'आप हमसे स्वच्छताके आधुनिक तरीके अपनाने और ज्यादा अच्छी तरह रहने को कहते हैं। और आप आश्वासन देते हैं कि सरकार हमारे साथ न्यायका व्यवहार करेगी। हम इसपर विश्वास नहीं करते। क्या आपके दादा उस्मानका रहन-सहन उनके ही स्तरके किसी भी यूरोपीयके बराबर नहीं है ? क्या नगर-परिषदने इसका कोई खयाल किया है ? नहीं। हम अच्छे रहें या बुरे रहें, हमारी हालत न अच्छी होगी न बुरी होगी।" यूरो- पीय उपनिवेशी पुकार-पुकार कर कहते आ रहे हैं कि उन्हें आधुनिक ढंगसे रहनेवाले इज्जत- दार भारतीयोंके बारेमें कोई आपत्ति नहीं होगी। प्राथियोंने हमेशा ही यह कहा है कि कथित अस्वच्छताके आधारपर जो आपत्तियां की जाती हैं, वे झूठी हैं। और साफ है कि डर्बन नगर-परिषदने हमारा यह दावा सही साबित कर दिया है।

तथापि, न्यूकैसिल नगर-परिषद डर्बनकी परिषदसे भी कुछ आगे बढ़ गई है। उसके परवाना-अधिकारीने पिछले साल परवाना पाये हुए आठ भारतीय दुकानदारों में से हर एकको इस वर्ष कानूनके अनुसार परवाने देनेसे इनकार कर दिया है। दीख पड़ता है कि उसे ऐसा करनेका आदेश दिया गया था। इस तरह तमाम लोगोंको परवाने न देनेसे उपनिवेशके भारतीय व्यापारियोंके दिलोंमें आतंक छा गया है। इन दुकानदारोंका कारबार स्थगित होनेसे न केवल ये और इनके आश्रित ही मारे जायेंगे, बल्कि डर्बनकी कुछ पेढ़ियाँ भी, जो उनका पोषण करती है, बैठ जायेंगी। इन लोगोंकी पूंजी उस समय दस हजार पौंडसे अधिक कूती गई थी। और उनपर सीधे आश्रित रहनेवाले लोगोंकी संख्या चालीससे अधिक थी। इसलिए नगर-परिषदके सामने अपील करने के लिए भारी खर्च उठाकर एक प्रमुख वकील श्री लॉटनको नियुक्त किया गया। फलतः (आठ दुकानदारोंके) नौमें से छ: परवाने मंजूर किये गये। शेष तीन व्यक्तियोंने, जिन्हें परवाने देनेसे इनकार किया गया, सर्वोच्च न्यायालयमें अपील की। परन्तु उसने बहुमतसे अपील नामंजूर कर दी। कारण यह बताया गया कि कानूनकी पाँचवीं धाराके अनुसार सर्वोच्च न्यायालयको उसपर विचार करने का अधिकार नहीं है। चूंकि बात बहुत महत्त्व की थी और चूंकि मुख्य न्यायाधीशने शेष दो न्यायाधीशोंसे मतभेद व्यक्त करते हुए वादियोंके पक्ष में राय दी थी, इसलिए मामलेको सम्राज्ञीको न्याय परिषद (प्रीवी कौंसिल) के सामने ले जाया गया। वादियोंके वकीलोंके पाससे लन्दनसे आये हुए एक तारमें बताया गया है कि अपील खारिज हो गई है। न्यायके नाते कहना ही होगा कि न्यूकैसिल नगर- परिषदने कृपा करके तीनों वादियोंको अपीलके दौरानमें अपना कारबार जारी रखने दिया है। परन्तु उसकी नीति स्पष्ट है। अगर वह शिष्टताके साथ तथा आन्दोलन खड़ा किये बिना न्यूकैसिलसे भारतीयोंका सफाया कर सकती तो उसने पीड़ित पक्षपर होनेवाले परिणामोंका खयाल किये बिना वैसा कर डाला होता। परवाना-अधिकारीने परवाने देनेसे इनकार करने के जो कारण बताये थे वे उपर्युक्त सभी मामलोंमें एक ही थे - अर्थात्, "इस अर्जीके सम्ब- न्धमें सफाई-दारोगाने १८९७ के कानून १८ के नियमोंके खण्ड ४ की रातोंके अनुसार जो रिपोर्ट तैयार की है वह प्रतिकूल है और सम्बद्ध मकान कानूनके खण्ड ८ के अनुसार इच्छित व्यापारके योग्य नहीं है। इसलिए मैंने अर्जीको नामंजूर कर दिया।" परवाना देनेसे इनकार होनेके पहले किसी भी अर्जदारको सफाई-दारोगाकी रिपोर्ट या परंवाना-अधिकारीके कारणोंका कोई ज्ञान नहीं था। उनसे अपने मकानोंमें किसी तरहका सुधार या फेरफार करनेको भी