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प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको

उन्हें न्याय दीजिए। नया विधेयक इन लोगोंको या सारे समाजको न्याय देता है, यह ईमानदारीसे विचार करनेवाला कोई व्यक्ति नहीं कह सकता। क्योंकि, विधेयक जन- साधारणको लाभ पहुंचानेवाली होड़को दूर कर देनेका अधिकार स्वार्थी लोगोंके हाथोंमें सौंप देता है और इन स्वार्थी लोगोंको अपनी जेबें भरने में समर्थ बनाता है। . . . मैंने हाल ही आपके एक सहयोगी पत्रमें पढ़ा था कि डंडीके स्थानिक निकायने अगले वर्ष के लिए किसी भी अरब व्यापारीका परवाना नया न करनेका निश्चय किया है और पर- वाना-अधिकारीको तदनुसार निर्देश दे दिया है। ये लोग [स्थानिक निकायके सदस्य] अंग्रेज व्यापारी हैं और चाहते हैं कि साराका सारा व्यापार इनके ही हाथोंमें रहे, जबकि जनता इन्हें मुंहमांगे भाव चुकाती रहे। निश्चय ही अब समय आ गया है जबकि सरकारको चाहिए कि वह इन लोगोंको इनकी सीमा बता दे।

टाइम्स आफ नेटालने अपने २१ दिसम्बर, १८९८ के अंकमें उपर्युक्त पत्रपर टीका करने के बाद भारतीय व्यापारियोंके प्रति विरोधको आत्म-रक्षणके आधारपर उचित बताते हुए कहा है :

साथ ही, हमारी यह इच्छा बिलकुल नहीं है कि इन भारतीय व्यापारियोंके साथ सख्तीका व्यवहार किया जाये। ...फिर भी, हम नहीं मानते कि उपनिवेशी किसी भी बड़ी संख्यामें यह चाहते होंगे कि इन कानूनोंके अनुसार दिये गये अधिकारों का उपयोग अत्याचारी ढंगसे किया जाये। यदि यह समाचार सही है कि डंडीके स्थानिक निकायने अगले वर्षके लिए भारतीयोंके किसी भी परवानेको नया न करनेका निश्चय किया है, तो हम निकायसे जोरोंके साथ आग्रह करेंगे कि वह अपने ही करदाताओंके हित में, और आम तौरपर उपनिवेशके हितमें भी, उस निश्चयको तुरन्त रद कर दे। निकायको परवाने नये करनेसे इनकार करनेका अधिकार जरूर है, परन्तु यह अधिकार देते समय कभी क्षण-भर के लिए भी सोचा नहीं गया था कि इसका उपयोग इस तरह सर्वप्राही रूपमें किया जायेगा। विक्रेता-परवाना कानूनके लिए जिम्मेदार श्री एस्कम्ब थे और उन्होंने कभी स्वप्नमें भी खयाल नहीं किया था कि उसके द्वारा दिये गये अधिकारका उपयोग इस तरह किया जायेगा। अधिनियम स्वीकार करने में यह खयाल उतना नहीं था कि परवाना-अधिकारियोंको उपनिवेशमें पहलेसे ही व्यापार करते आनेवाले भारतीयोंसे निपटनेका अधिकार दिया जाये, जितना कि यह था कि और भारतीयोंको व्यापार करनेके लिए यहाँ आनेसे रोका जाये। विधेयकका दूसरा वाचन प्रारम्भ करते हुए श्री एस्कम्बने बताया कि उसे नगर-परिषदों के अनुरोधपर पेश किया गया है। उन्होंने कहा : 'उनका उद्देश्य क्या है, यह बताने में उन्हें कोई संकोच नहीं है; और सरकारको भी उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लेनेमें कोई आपत्ति नहीं है। प्रस्ताव यह है कि कतिपय लोगोंको इस देशमें आकर यूरोपीयोंके साथ गैर-बराबर हालतोंमें होड़ करने और व्यापारके लिए परवाने प्राप्त करनेसे, जो यूरोपीयोंके लिए ही जरूरी हैं, रोका जाये।' और फिर, 'अगर लोगोंको शंका रही कि उन्हें परवाना मिलेगा या नहीं तो यहाँ व्यापार करने के लिए कोई आयेगा ही नहीं। इसलिए यदि कानूनको किताबमें यह कानून मौजूद रहे तो वह बगैर ज्यादा अमलके भी अपना काम पूरा करता रहेगा।' इस तरह, स्पष्ट