पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४०
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

है कि कानून तो व्यापक अधिकार प्रदान करता है, फिर भी जिम्मेदार मन्त्रीने अपना उद्देश्य पूरा करनेके लिए उसकी व्यवस्थाओंके अमलपर नहीं, बल्कि उसके अस्तित्वसे पैदा होनेवाले नैतिक असरपर भरोसा किया था। यह उद्देश्य पहलेसे ही यहाँ रहनेवाले व्यापारियोंको उनके परवानोंसे वंचित करना नहीं, बल्कि दूसरोंको यहाँ आने और परवाने प्राप्त करनेसे रोकना था। यह अपेक्षा नहीं की गई थी कि वे निकाय और परिषदें, जिन्हें इस कानूनके अन्तर्गत अपीली न्यायालय नियुक्त किया गया है, अपने अधि- कारोंका वैसा दुरुपयोग करेंगी, जैसा कि डंडीका निकाय करनेको धमकी दे रहा है। दूसरे वाचनको बहसका जवाब देते हुए श्री एस्कम्बने कहा : 'मुझे कोई सन्देह नहीं है कि इस विधेयककी आवश्यकता केवल उस गम्भीर खतरेके कारण हो सकती है, जो इस देशके सामने मुंह बाये खड़ा है। परन्तु मुझे नगरपालिकाओंके अधिकारियों और उप- निवेशको न्यायशीलतापर इतना विश्वास है कि, मैं मानता हूँ, इस विधेयकका प्रयोग, जिसे मैं न्याय और नरमी कहता हूँ उसके साथ किया जायेगा।' अच्छा हो कि डंडीका निकाय इन शब्दोंको याद रखे, क्योंकि वह भी सोचे हुए सर्वग्राही तरीकेपर अपनी सत्ताका उपयोग जितने असन्दिग्ध रूपमें करेगा, उतने ही असन्दिग्ध रूपमें वह उद्देश्य विफल होगा, जो हम सबके सामने है। बेशक, अवांछनीय लोगोंका मूलोच्छेद होने दीजिए, परन्तु यह काम कमशः होना चाहिए, ताकि उद्देश्यकी पूर्ति कोई भारी अन्याय किये बिना ही हो जाये। कहा जा सकता है, 'कानून तो है, हम उसको अमलमें लायेंगे।' हाँ, कानून जरूर है, मगर उससे अन्याय ढाया गया, तो वह कितने दिनों तक टिकेगा? उपनिवेशमें ऐसे मतदाताओंकी संख्या बहुत बड़ी है, जिन्हें अपने मजदूर भारतसे ही लाने पड़ते हैं। यह बात भुलानी नहीं चाहिए, क्योंकि यह भारत-सरकारके हाथमें एक ऐसा शस्त्र है, जिसके द्वारा वह इस उपनिवेशसे जितना बहुत-से लोग समझते हैं उससे बहुत ज्यादा ऐंठ सकती है। मान लीजिए, भारत-सरकार कह देती है, 'आपको तबतक और मजदूर नहीं मिल सकते जबतक कि आप उस कानूनको रद नहीं कर देते, जिसके अधीन हमारे लोगोंके साथ घोर दुर्व्यवहार किया गया है, तो परिणाम क्या होगा? हम इसका अन्दाज नहीं लगायेंगे। अगर स्थानिक निकाय, नगर-परिषदें और परवाने देनेवाले निकाय बुद्धिमान हैं तो वे भारतीय मजदूरोंके मालिकोंको ऐसी अग्नि-परीक्षासे गुजारनेकी कभी कोई कोशिश नहीं करेंगे।

इस लम्बे उद्धरणके लिए प्रार्थी क्षमा-याचना नहीं करते, क्योंकि यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका महत्त्व केवल इसके स्रोतके कारण नहीं, बल्कि जिस ढंगसे इसमें विषयका निरूपण किया गया है उसके कारण भी है। विधानमण्डलके अच्छे इरादे कानूनमें निहित नहीं हैं, यद्यपि उन्हें उसमें उतारा जरूर जा सकता था। यदि ऐसा किया गया होता तो भारतीय व्यापारी इस चिन्ता से बच जाते कि उनकी रोटी कभी भी एकाएक उनके मुंहसे छीनी जा सकती है। सरकारी मुखपत्र एक ऐसी बात मंजूर कर गया है, जो डंडीके निकायको बताई हुई उसकी अपनी ही फटकारसे मेल नहीं खाती। वह निकायोंको एक छिपा हुआ इशारा मालूम होती है कि वे लोगोंका ध्यान खींचे बिना किस तरह अपना उद्देश्य पूरा कर सकते हैं। क्योंकि, वह भी यही चाहता है कि अवांछनीय लोगोंका एक “बहुत ऋमिक तरीके" से "मूलोच्छेद" कर दिया जाये। इस रुखका मेल जो लोग पहलेसे ही जमे हुए है उनको न छेड़नेकी इच्छाके साथ