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प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको

कैसे बेठ सकता है ? तत्कालीन प्रधानमन्त्रीके शब्दोंका उपयोग किया जाये तो, डंडीका निकाय अपने " भोंड़े मुंहफटपने" के कारण जिस कार्यको पूर्ण करने में विफल हो सकता है उसको, टाइम्स चाहता है, ऐसे अप्रत्यक्ष रूपमें और कूटनीतिक तरीकेसे पूर्ण किया जाये कि उसका असली उद्देश्य प्रकट न हो।

नेटाल मर्क्यूरी(१४ दिसम्बर, १८९८) में एक पत्र-लेखकने लगभग बीस वर्षसे उपनिवेशका निवासी" के नामसे लिखा है :

महोदय, आपके आजके अंकमें मैंने न्यूकसिलका एक पत्र देखा है। उसमें कहा गया है कि उस नगरके शक्तिमान निगम (कारपोरेशन) ने वावड़ा नामक व्यक्तिके खिलाफ, जिसे उसने परवाना देनेसे इनकार कर दिया था, दायर किया हुआ मुकदमा जीत लिया है। पत्रमें यह खबर भी दी गई है कि इस नतीजेका सारे उपनिवेशमें स्वागत किया जायेगा। वावड़ा एक भारतीय है, जो न्यूकैसिलमें गत १५ वर्षोंसे व्यापार करता आ रहा है। इस दौरानमें वह एक अच्छा नागरिक रहा है। परन्तु, दुर्भाग्यसे, वह एक सफल व्यापारी भी रहा है। स्पष्टतः, यह हकीकत न्यूकैसिलके परवाना-निकायके सदस्योंको, जो खुद व्यापारी हैं, पसन्द नहीं है। निगमको अपने अधिकारोंकी ऐसी दय- नीय विडम्बनापर कहाँतक बधाई दी जा सकती है, या यह कि सम्राज्ञीको न्याय परिषद (प्रीवी कौंसिल) के निर्णयका नेटालके न्यायशील व्यक्ति स्वागत करेंगे इसमें शंका है।

--आपका, आदि,
 
लगभग बीस वर्षसे उपनिवेशका निवासी।
 

ट्रान्सवाल-सरकार भारतीयोंको पृथक् बस्तियोंमें हटानेका प्रयत्न करती आ रही है। परन्तु वह भी भारतीयोंको कुछ समय' देनेको तैयार है - चाहे वह समय कितना ही नाकाफी क्यों न हो--ताकि वे सरकारको दृष्टिमें हानि उठाये बिना अपने कारबारको हटा सकें। स्वभावतः ही, सम्राज्ञी-सरकार ऐसी स्वल्प रियायतसे संतुष्ट नहीं है। और प्रार्थी जानते हैं कि जो लोग पहलेसे ही जमे हुए है उनसे छेड़छाड़ न करने के लिए ट्रान्सवाल-सरकारको समझानेका प्रयत्न किया जा रहा है। आरेंज फी स्टेटकी सरकारने, यद्यपि वह बिलकुल स्वतंत्र है, भारतीय व्यापारियोंको अपना व्यापार बन्द कर देने के लिए एक सालका समय दिया था। परन्तु नेटाल-उपनिवेशने, जो दक्षिण आफ्रिकाका सबसे अधिक ब्रिटिश उपनिवेश होनेका दम भरता है, भारतीय व्यापारियों को व्यापार करने के अधिकारसे एकाएक वंचित कर देनेका अधिकार प्राप्त कर लिया है। उसने उसे काम में लाने का प्रयत्न भी किया है और यह खतरा पैदा कर रखा है कि उसे जरूर काममें लाया जायेगा। नेटाल ऐडवर्टाइज़र (तारीख १३ दिसम्बर, १८९८) इस विसंगतिके बारेमें लिखता है :

हम इतना ही कह सकते हैं कि (सम्राज्ञीको न्याय-परिषदके) निर्णयपर हमें सख्त अफसोस है। यह तो ऐसा काम है जिसको अपेक्षा ट्रान्सवालको संसदसे की जा सकती थी। उस संस्थाने अपने परदेशी निष्कासन कानून (एलियन्स एक्सपल्शन लॉ) में उच्च न्यायालयके अधिकार-क्षेत्रका उच्छेद कर दिया है। और इसके बारेमें उपनि- वेशोंमें जो शोरगुल मचा था वह पाठकोंको याद होगा। परन्तु वह इस कानूनसे रत्ती- भर भी ज्यादा खराब नहीं है। हाँ, अगर दोनोंमें कोई फर्क है, तो हमारा कानून ज्यादा खराब है, क्योंकि उसका अमल अधिक बारंबार किया जानेको सम्भावना है। यह कहना फिजूल


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