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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

भारतीयोंपर, और सिर्फ उनपर ही लागू किया जायेगा । वास्तवमें वह स्वीकार तो संसदके एक ऐसे अधिवेशनमें किया गया, जो भारतीय-विरोधी समुदायको तुष्ट करनेके लिए साधारण समयसे एक महीने पहले ही कर लिया गया था; फिर भी उपनिवेश-मन्त्रीकी स्वीकृति प्राप्त करनेके लिए उसे रूप ऐसा दिया गया, मानो वह सब- पर लागू होता हो।

अधिनियमका असर है - व्यापारके परवाने देने या न देनेका अधिकार भारतीय व्यापारियों के माने हुए शत्रुओंके हाथों में सौंप देना । नतीजा वही है, जिसकी अपेक्षा की जा सकती है । और हम सब जो कुछ देखते हैं उससे लज्जित हैं, भले ही हम इसे मंजूर करें या न करें।

आपका बहुत सच्चा,
 
एफ० ए० लॉटन
 
परिशिष्ट ङ
३९, गार्डिनर स्ट्रीट
 
डर्बन
 
दिसम्बर २३, १८९८
 

श्रीमान् मो० क० गांधी

१४, मयुरी लेन

डर्बन

प्रिय-महोदय,

बाबत: विकेता-परवाना अधिनियम

आपके आजफी तारीखके पत्रके उत्तरमें, मैं नहीं समझता कि इस कानूनका प्रयोग विधानमण्डलकी भावनाके अनुसार किया जा रहा है । उस समयके प्रधानमन्त्रीने, जिन्होंने विधेयक पेश किया था, कहा था: “इसका मुख्य उद्देश्य उन लोगोंपर असर करनेका है, जिनका निपटारा प्रवासी-विधेयकके अन्तर्गत किया जाता है । जहाज़वालोंको अगर मालूम हो कि इन्हें उतारने नहीं दिया जायेगा तो वे इन्हें नहीं लायेगे । और अगर लोगोंको मालूम हो कि उन्हें परवाने नहीं मिल सकेंगे तो वे व्यापार करनेके लिए यहाँ आयेगे ही नहीं।"

बहुत दिन नहीं हुए कि मेरे पास इसी तरहका एक मामला उपस्थित हुआ था । एक चीनी राष्ट्रिय उपनिवेशमें तेरह वर्षोंसे रह रहा था। उसे परवाना देनेसे इनकार कर दिया गया । मुझे निश्चय है कि इसका कारण और कुछ नहीं, सिर्फ यह था कि वह चीनी राष्ट्रिफ था। डर्बन-सम्बन्धी ऑफड़ोंसे मालूम होता है कि गत दस वर्षों के अन्दर इस शहरका फैलाव और आबादी दूनीसे ज्यादा हो गई है। और फिर भी इस आदमीको जिसने अपना भाग्य उपनिवेशके साथ जोड़ दिया था- एक ऐसे आदमीको, जिसका चरित्र निष्कलंक था, जो उस समय इस उपनिवेशमें आया था जब कि यहाँ आजके १०० मनुष्योंकी जगह केवल ४० मनुष्य निवास करते थे डर्बनमें ईमानदारीके साथ जीविका उपार्जित करनेका साधन देनेसे इनकार कर दिया गया; उसके चरित्रका और इस बातका कोई खयाल नहीं किया गया कि वह लम्बे अरसेसे उपनिवेशमें रह रहा है । इसी तरह, मैंने देखा है कि न्यूफैसिलमें एक भारतीयको परवाना देनेसे इनकार कर दिया गया । वह १५ वर्षासे नेटालमें रह रहा था। अगर किसी यूरोपीयने उसी परवानेफी अर्जी दी होती तो उसे वह दे दिया जाता ।

यह उचित नहीं है।

आपका विश्वासपात्र,
 

{{Rh|||पी० ओ ही}


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