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२४. भारतके पत्रों और लोक-सेवकोंको
डर्बन
 
जनवरी २१,१८९९
 

महोदय,

इसके साथ भेजा हुआ प्रार्थनापत्र' अपनी दुःखभरी कहानी आप ही सुना रहा है। इसमें जो शिकायत की गई है वह भावनात्मक नहीं, बल्कि बहुत गम्भीर और बहुत सच्ची है। अगर उसे तुरन्त दूर न किया गया तो आसार ये हैं कि उससे सैकड़ों भूखोंकी रोटी छिन जायेगी। नेटालके परवाना-अधिकारी प्रतिष्ठित भारतीयोंको उनके प्राप्त किये हुए अधिकारोंसे वंचित करना चाहते हैं। स्थितिका तकाजा है कि अखबार और लोक-सेवक इसपर तुरन्त उत्कटताके साथ और लगातार ध्यान दें। गिरमिटिया भारतीयोंका नेटाल जाना रोक देनेसे कम कोई कार्रवाई मामलेको निपटाने के लिए काफी नहीं होगी। हाँ, नेटाल सरकारको परवाना-कानूनमें ऐसा संशोधन करनेके लिए प्रेरित किया जा सके, जिससे कि वह कानून ब्रिटिश संविधान द्वारा स्वीकृत न्याय-सिद्धान्तोसे मेल खाने लगे, तो बात दूसरी है।

दूसरी सब शिकायतें सैद्धान्तिक वाद-विवादके लिए ठहर सकती हैं, परन्तु इसमें देरीकी कोई गुंजाइश नहीं है।

डर्बन नगरमें भारतीय' १,००,००० पौंडसे भी अधिक मूल्यकी भूमिके मालिक हैं। सफाई- दारोगाकी उत्तम रिपोर्ट के बावजूद, कुछ अच्छेसे अच्छे मकानोंके लिए, जिनके मालिक भारतीय है, परवाने देनेसे इनकार कर दिया गया है।

एक व्यापारी अपना कारोबार बेच देना चाहता है। उसका सारा मुनाफा उसके मालमें ही है। वह ग्राहक पाने में असमर्थ है, क्योंकि खरीदनेवालेको परवाना मिल सकता है, इसका. कोई निश्चय नहीं है।

आपका आशाकारी,
 
मो० क. गांधी
 

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० २९४९) से।



१. श्री चेम्बरलेनके नाम ३१-१२-१८९८ का प्रार्थनापत्र ।


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