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२५. प्रार्थनापत्र : लॉर्ड कर्जनको
डबैन
 
जनवरी २७, १८९९
 

सेवामें

परम माननीय जार्ज नैथेनियल, केडल्स्टनके बैरन कर्जन

भारतके वाइसराय और गवर्नर-जनरल

कलकत्ता

नेटाल उपनिवेशवासी ब्रिटिश भारतीयोंके नीचे हस्ताक्षर
करनेवाले प्रतिनिधियोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

प्रार्थी परमश्रेष्ठका ध्यान उस प्रार्थनापत्रकी प्रतिकी ओर आकृष्ट करनेका साहस करते हैं जो कि उन्होंने सम्राज्ञीके प्रथम उपनिवेश-मन्त्रीकी सेवामें, नेटाल-विधानमण्डल द्वारा १८९७ में स्वीकृत विक्रेता-परवाना अधिनियमके विषयमें, भेजा है।

परमश्रेष्ठको उस प्रार्थनापत्रसे विदित होगा कि

(क) जिस अधिनियमकी शिकायत की गई है वह एक प्रत्यक्ष, वास्तविक तथा ठोस दुःख-दर्दका कारण बन रहा है; और जिस प्रकार उसे अमलमें लाया जा रहा है उसका, नेटाल उपनिवेशमें बसे हुए भारतीय व्यापारियोंके उपलब्ध अधि- कारोंपर बहुत गम्भीर दुष्परिणाम होनेकी सम्भावना है;

(ख) जो हित दाँव पर चढ़े हैं उनका मूल्य हजारों पौंड है;

(ग) “जैसा कि नेटालके कुछ पत्रकार भी मानते हैं, दक्षिण आफ्रिकाके गणराज्यने जितनी दूरी तक जानेका साहस किया है, नेटालका विधानमण्डल उससे भी बहुत आगे बढ़ गया है;

(घ) अधिनियमका अमल परम माननीय हैरी एस्कम्बके, जिन्होंने उसे पास कराया था और जो उस समय उपनिवेशके प्रधानमंत्री थे, सार्वजनिक रूपसे दिये आश्वासनके प्रतिकूल सिद्ध हुआ है। उन्होंने कहा था कि उन्हें नगर-परिषदों और नगर-निकायों- पर पूरा विश्वास है कि वे व्यापारके वर्तमान परवानोंमें उलट-फेर नहीं करेंगे।

ङ कई नगर-परिषदें और स्थानिक निकाय वर्तमान परवानोंमें पहले ही गम्भीर हस्तक्षेप कर चुके हैं, और उन्होंने आगे और अधिक हस्तक्षेप करनेका भय दिखलाया है।

इन परिस्थितियोंमें, आपके प्रार्थियोंने निवेदन किया है कि या तो इस अधिनियममें ऐसे संशोधन कर दिये जायें कि यह ब्रिटिश न्याय-सिद्धान्तोंसे मेल खाने लगे, या फिर इस उपनि- वेशमें गिरमिटिया मजदूरोंका भेजना बन्द कर दिया जाये।

आपके प्राथियोंका विचार है कि यदि ब्रिटिश-भारतसे बाहर ब्रिटिश-भारतीयोंके अधिकारोंको मिट जानेसे बचाना हो तो इस मामले में भारत-सरकारको सत्रिय और कारगर हस्तक्षेप करना चाहिए। इस प्रार्थनापत्रसे संलग्न परिशिष्टमें, डंडीके स्थानिक निकायके एक प्रस्तावका जिक

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