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३०. पत्र: नगर-परिषदको

गांधीजीने नीचे दिया हुआ पत्र पीटरमै रित्सबर्गकी नगर परिषदको लिखा था । यह उस समय लिखा गया था, जब कि, १८९९ में, प्लेग शुरू होनेका डर फैला था ।

डर्बन
 
[मार्च ८, १८९९ के पूर्व]
 

इस देश में गिल्टीवाले प्लेगका प्रवेश रोकनेके लिए सफाईकी जो एहतियाती कार्रवाइयाँ की जा रही हैं, उनके सम्बन्धमें क्या मैं यह सुझाव दे सकता हूँ कि सफाईके नियमों, चूनेकी पोताई, कीटाणुओंके. नाश आदिके बारेमें एक पुस्तिका निकालना बहुत उपयोगी हो सकता है ? कुछ दिन पहले निगम (कारपोरेशन) की एक विज्ञप्ति प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तिका उसका एक अच्छा पूरक होगी। अगर यह सुझाव स्वीकार कर लिया जाये तो मुझे उपनिवेशमें बोली जानेवाली भारतीय भाषाओंमें उस पुस्तिकाका अनुवाद करा देनेमें खुशी होगी। अगर जरूरत हो तो मैं उसका मुफ्त वितरण भी करा दूंगा। निगमको सिर्फ छपाई और डाकका खर्च देना होगा।

[अंग्रेजीसे]

नेटाल मक्युरी, ४-३-१८९९

३१. रोडेशियाके भारतीय व्यापारी
१४, मक्युरी लेन
 
डर्बन
 
मार्च ११, १८९९
 

समान

सेवामें

सम्पादक

टाइम्स आफ इंडिया

[बम्बई]

महोदय,

मैं इसके साथ एक पत्रकी नकल भेज रहा हूँ। यह पत्र रोडेशियाके उमतली नामक स्थानके भारतीय व्यापारियोंके पाससे नेटालके भारतीय समाजके नाम प्राप्त हुआ है । पत्र स्वयं स्पष्ट है। ऐसा मालूम होता है कि अधिकारियोंने भारतीयोंको सहायता दी है। परन्तु मेरे नम्र विचारसे, समस्याको हल करनेके लिए अत्याचारियोंको पर्याप्त दण्ड देना ही चाहिए। साथ ही औपनिवेशिक कार्यालयको इस आशयकी जोरदार घोषणा भी करनी चाहिए कि दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश उपनिवेशी भारतीय प्रवासियोंकी स्वतंत्रतामें हस्तक्षेप करेंगे तो उन्हें क्षमा नहीं किया जायेगा। औपनिवेशिक कार्यालय इतना न करे तो काम नहीं चलेगा। पत्रसे यह दीख पड़ेगा कि हिंसा-कार्योंमें प्रमुख यूरोपीयों और शान्ति कायम करनेके लिए नियुक्त मजिस्ट्रेटों ने

१.देखिए आगेका सहपत्र ।

२. जस्टिसेज़ आफ द पीस, जे० पी०'


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