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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समय देनेकी बात सिर्फ इसलिए. कही थी कि वह और कुमक बुला सके । बादमें पुराने उमतली शहरसे तमाम उपलब्ध घुड़सवार पुलिसको बुलाकर हमारे वस्तु-भण्डारपर पहरा लगा दिया गया । उसी दिन लाभग आधी रातके समय करीब पन्द्रह अंग्रेजोंने इस शहरके अल्लारखिया हुसेनके वस्तु-भण्डारपर आक्रमण किया । उन्होंने दरवाजे तोड़ डाले, सामान जहाँ-तहाँ फेंक दिया और दूकानके कर्मचारियों तथा पुलिसवालोंको मारा । कर्मचारी तीन थे। वे वस्तु-भण्डार और सामानको चोरोंकी दयापर छोड़कर भाग गये । इन्स्पेक्टर, बर्चने, सरकारके प्रतिनिधिफी हैसियतसे, जितना संरक्षण उनसे हो सकता था, हमें दिया ।

जनवरी ५ की सुबह व्यापार-मण्डलके सदस्य हमारे वस्तु-भण्डारमें आये और उन्होंने हमें ताकीद की कि हमारे सामान समेटकर चले जानेका समय खत्म हो चुका है। हमने जवाब दिया कि स्थिति अब बदल गई है । हमसे चले जानेका वादा हिंसाके बलपर कराया गया था और हम उससे बँधे हुए नहीं है । हमने यह भी कहा कि भीड़से हमारी रक्षा करनेके लिए शहरमें काफी पुलिस मौजूद है । इसपर व्यापार-मण्डलके सदस्य नाराज होकर चले गये । हमलावरों के नेताओंसे हमारे प्रति तीन महीनेतफ शान्ति कायम रखनेके लिए. सौ-सौ और दो-दो सौ पौंडकी जमानते ले ली गई।

उनमें से दोको मुकदमेके लिए उच्च न्यायालयके सुपुर्द कर दिया गया । हमने अपना व्यापार फिर साधारण रूपसे शुरू कर दिया है । परन्तु रोडेशियाई व्यापारी अब भारतीय व्यापारियोंफो रोडेशियामें व्यापार करने देनेके प्रश्नपर झगड़ रहे हैं।

उनका पहला कदम इस बातको रोडेशियाकी विधान-परिषदके सामने लाना होगा । वे परिषदसे प्रार्थना फरेंगे कि “ अवांछनीय" लोगोंको (वे यह शब्द हमारे लिए काममें लाते हैं) व्यापारके परवाने देनेसे इनकार करनेका अधिकार स्थानिक संस्थाओंको दे दिया जाये । न्यूफैसिल (नेटाल) के परवाना देनेवाले निकाय (बोर्ड) का एक भारतीयको परवाना न देनेका जो फैसला सम्राशीकी न्याय-परिषद (प्रीवी कौंसिल) ने हालही में बहाल रखा है, उससे इन लोगोंको अपनी इस कार्य-प्रणालीमें मदद मिली है । हमें मालूम हुआ है कि आपकी कांग्रेसने इस मामलेको हायमें लिया है।

अन्तमें हम आपसे निवेदन करते हैं कि जैसे यूरोपीय लोग मिलकर हमें इस प्रदेशसे निकाल देने के लिए. आकाश-पाताल एफ कर रहे हैं, वैसेही हम भी अपने ब्रिटिश प्रजा-सुलभ अधिकारोंके लिए लड़ना चाहते हैं। आपसे हमारा सादर निवेदन है कि आप इस विषयपर गम्भीरताके साथ विचार करें और हमारा - -सचमुच तो आम ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंका- मामला हायमें लें।

दक्षिण आफ्रिकाके कुछ हिस्सोंमें, जो पोर्तुगीज़, फ्रांसीसी, जर्मन और डच लोगों के शासनाधीन हैं, हमें खतन्त्रतापूर्वक व्यापार करने दिया जाता है । फिर, यह देखते हुए फि ब्रिटिश झण्डेके नीचे तो हम संरक्षणके खास हकदार हैं, एक ब्रिटिश प्रदेशमें हमारा विरोध क्यों होना चाहिए, हम समझ नहीं सकते।

हमें यह भी महसूस होता है कि ब्रिटेनकी भारत-सम्बन्धी नीति ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंपर अत्याचारके बिलकुल खिलाफ है।

इस बारमें हमने अपने ब्रिटिश एजेंटोंको, और भारतके वाइसराय लॉर्ड कर्जनको भी, लिखा है । इस विषयको ब्रिटिश संसदके सामने पेश करानेका हमारा निश्चय है । आपसे भी हम प्रार्थना करते हैं कि इस महान प्रश्नपर वैध उपायोंसे संघर्ष करने और इसका निबटारा कराने में आप हमारी मदद करें।

बी० आर० नायक
 
(नाथूवाले और कं. के वास्ते)
 
अल्लारखिया हुसेन
 

[अंग्रेजीसे]

टाइन्स आफ़ इंडिया (साप्ताहिक संस्करण), १५-४-१८९९ ।

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