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३२. दक्षिण आफ्रिकामें प्लेगका आतंक'
डर्बन
 
मार्च २०, १८९९
 

दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी मुसीबतोंका प्याला अब तक भरा नहीं दिखलाई पड़ता; और गिल्टीवाला प्लेग उसे लबालब भर देने के आसार दिखा रहा है। एक अफवाह फैल गई थी कि लोरेनज़ो मार्कसमें एक व्यक्तिको प्लेग हो गया है। यह अब झूठी साबित हो गई है। परन्तु इससे दक्षिण आफ्रिका भर बेचैन हो उठा था और इस महाखण्डकी विभिन्न सरकारोंने सख्त उपाय करने शुरू कर दिये थे, जो मुख्यतः भारतीयोंपर लागू होते थे। जब यह सब हो ही रहा था, यह अफवाह फैली कि एक भारतीय लोरेनजो मार्कसमें कुछ समयतक रहनेके बाद ट्रान्सवालके मिडेलबर्ग नामक स्थानमें चला गया था; वह गिल्टीवाले प्लेगसे मर गया है। इसपर तुरन्त यह मान लिया गया कि बीमारीके पककर प्रकट होनेकी कोई निश्चित अवधि बताई नहीं जा सकती। साथ ही, भारतीयोंके आगमनका पूर्ण निषेध करनेके सुझाव भी दिये गये। ट्रान्सवाल-सरकारने एक घोषणा निकालकर अपने देशमें पड़ोसी राज्योंसे भी भारतीयोंके प्रवेशका निषेध कर दिया। ऐसा करते हुए इस बातकी भी परवाह नहीं की गई कि प्रवेशेच्छुक भारतीय इनमें से किसी राज्यका बहुत पुराना निवासी है, या भारतसे नया-नया आनेवाला कोई व्यक्ति है। हाँ, अगर उसके पास राज्य-सचिवसे प्राप्त परवानेका जोर हो तो बात दूसरी। और, यह परवाना तो, यहाँ कह दिया जाये, हर-किसी भारतीयको आसानीसे मिलने- वाली चीज़ है नहीं। भारतीयोंका देशके अन्दर यात्रा करना भी करीब-करीब स्थगित कर दिया गया। यह लिखते समय समाचारपत्रोंमें एक तार दिखलाई पड़ा है। उसमें कहा गया है कि उपर्युक्त घोषणामें इस हदतक संशोधन कर दिया गया है कि भारतीयोंके सीमा-स्थित अफ़सरको यह सन्तोष दिला देनेपर कि वे हालहीमें मारिशस, मादागास्कर या भारतके किसी छूतग्रस्त जिलेसे नहीं आये हैं, बिना परवानेके देशमें प्रवेश करने दिया जायेगा।

जिन डाक्टरोंने उपर्युक्त रोगीकी मृत्यूपरान्त परीक्षा की थी उन्होंने कहा था कि बीमारी गिल्टीवाले प्लेगकी नहीं थी। तथापि, जो-कुछ शरारत होनी थी वह तो हो ही चुकी, और सारे दक्षिण आफ्रिकामें बेतहाशा खौफ़ फैला हुआ है। लोरेनजो मार्कस मलेरियासे भरा हुआ जिला है, अपनी गन्दगीके लिए मशहूर है और वहाँ सफाई करनेवालोंका कोई प्रबन्ध नहीं है। फिर भी, वहाँसे आये छोटे-मोटे तार-समाचारोंसे ज्ञात होता है, वहाँ प्लेग-सम्बन्धी नियम अत्यन्त कठोर और युक्तिहीन ही नहीं, बल्कि उत्पोड़क और अव्यावहारिक हैं। ट्रान्सवालमें भारतीयोंके कारोबारको गम्भीर क्षति पहुँच रही है। अनेक अभागे फेरीवाले अपना माल खरीदनेके लिए नेटाल' आये थे। अब उनमें से अधिकतर बाहर ही रोक दिये गये हैं। वे अपना माल और कर्ज छोड़ कर आये हैं। जैसी कि कलना की जा सकती है, उनमें परवाने प्राप्त करनेका सामर्थ्य नहीं है। न वे भारी कठिनाईके बिना ट्रान्सवालके कर्मचारियोंकी जाँच-पड़तालमें ही खरे उत्तर सकते हैं। कहा जाता है- यानी फेरीवाले खुद शिकायत करते है -कि ट्रान्सवालके

१. गांधीजीने दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयों के साथ किये जानेवाले व्यवहारपर बम्बईके टाइम्स आफ़ इंडिया में एक विशेष लेख-माला लिखी थी। यह लेख उसी मालाका अंश है । दूसरे लेखोंकी तारीखें हैं -मई १७, जुलाई १२, अक्टूबर २७, नवम्बर १८, १८९९ और मार्च १४, १९०० के बाद ।


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