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दक्षिण आफ्रिकामें प्लेगका आतंक

क्यों न आया हो। इसलिए स्वाभाविक है (अर्थात्, दक्षिण आफ्रिकामें; क्योंकि खयाल तो यह था कि सन्तापजनक सूतकके भयसे पहले दर्जेकी जहाज़-कम्पनियाँ अपने कर्तव्यका, यानी यात्रियोंको एक स्थानसे दूसरे स्थान ले जानेका, त्याग नहीं करेंगी) कि जहाज़-कम्पनियाँ किन्हीं भी भारतीय यात्रियोंको लेनेसे इनकार करती है। सरकारने फिलहाल गिरमिटिया भारतीयोंको लाना स्थगित कर दिया है। इसके अपवाद-रूप सिर्फ वे लोग हैं जो कलकत्तेमें रवाना होनेके लिए पड़े हैं।

मानो यह सब काफी नहीं था, इसलिए मैरित्सबर्गके लोगोंने कुछ दिन पूर्व वहाँके नगर- भवनमें एक सभा की। उसमें नगरके स्वास्थ्य अधिकारीने एक सख्त प्रस्तावके समर्थनमें बड़ी उग्र गलेबाजी की। भारतसे चावल तथा अन्य खाद्य पदार्थोके आयातको बिलकुल बन्द करानेके एक आन्दोलनके कारण, सरकारने भारत-सरकारसे पूछा था कि क्या चावलको रोगकी छूत पकड़ने- वाली वस्तु माना जाता है ? भारत-सरकारने नकारात्मक उत्तर दे दिया है। उक्त अधिकारी डॉ० ऐलनने आपकी सरकारपर यह अभियोग लगाया है :

मैं मानता हूँ कि भारत सरकारको जो तार भेजा गया था और उसका जो जवाब आया तथा प्रकाशित हुआ है, उसे सभाके सब लोगोंने पढ़ा ही होगा। मैं आपसे पूछना चाहूँगा, क्या यह सम्भव है कि अगर महान्यायवादीके पास किसी-एक सरकारी जेलमें कोई कैदी हो, जो किसी गुनाहके अभियोगमें सजा भोग रहा हो, तो महान्यायवादी उसे तार देंगे और पूछेगे : "तुम अपराधी हो या नहीं ? " मेरा खयाल है, आप लोगोंको यह कनमें कोई हिचक न होगी कि कारागारका वह भलामानुस जवाबमें क्या तार देगा। मैं तो कहूँगा कि उत्तर जोरदार "नहीं" होगा। ... महान्यायवादी खुदके व्यवसायपर वह सिद्धान्त लागू नहीं करेंगे। ... इस महा प्रश्न पर उन्होंने उसे लागू करने और उसे इस बातके प्रमाणके तौरपर पेश करनेका साहस किया है कि हम खतरेसे मुक्त हैं। यह प्रमाण उतना ही निकम्मा है, जितना कि कैदीके मामलेमें।

उपर्युक्त कथनसे अनेक खेदजनक विचार उठते हैं। यह तो शंकाके परे है कि इस सारे आन्दोलन, इस सारे आतंकका मूल गिल्टीवाले प्लेगका सर्वथा प्रामाणिक भय नहीं, बल्कि भारतीय- विरोधी पूर्वग्रह है, जिसका मुख्य कारण व्यापार-सम्बन्धी ईर्ष्या है। मैरित्सबर्गकी प्लेग-सम्बन्धी सभाकी कार्रवाईमें, और खास तौरसे डॉ० ऐलनके भाषणमें, यही भावना व्याप्त है। डॉ. ऐलनके मूल्यांकनके अनुसार, जो कुछ भी भारतीय है वह सब बुरा है। उन्होंने उन लोगोंपर भ्रष्टाचारी इरादोंका आरोप करने में कोई संकोच नहीं किया, जिन्हें वे भारत सरकारके "निम्न कर्मचारी" कहते हैं। उन्होंने कहा :

परन्तु बम्बई में एक बड़ी विलक्षण घटना घटी है, जिसे याद रखना आपके लिए महत्त्वका है। और वह यह है कि, संग्रहणी और अतिसारसे होनेवाली मृत्युओंको संख्या साधारण संख्यासे ५०,००० ज्यादा हो गई है। बम्बईकी सरकार खूब जानती है कि ये मृत्युएँ, या इनमें से ज्यादातर, प्लेगसे हुई हैं; और प्रभावशाली भारतीयोंने अपने कुटुम्बोंमें हुई मृत्युओंको देशी चिकित्सकों द्वारा दूसरे शीर्षकोंके अन्तर्गत दर्ज करा दिया है, ताकि वे सफाई-अफसरोंके मुआयनेसे बच जायें। इस प्रकारकी स्थिति सारे भारतमें व्याप्त है। ... आयोग (कमिशन) ने साफ साबित कर दिया है कि यही बात कलकत्तमें भी हो रही है। वह सरकारको ज्ञात था, परन्तु, मुख्यतः इसलिए कि उसे दंगेको आशंका थी, उसने वह काम नहीं

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