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सम्पूर्ण गाँधी वाङमय

किया।...भारत-सरकार उस प्लेगके मामले में अपने छोटे-छोटे अफ़सरोंपर बिलकुल ही भरोसा नहीं कर सकती। भारत-सरकारका साराका-सारा निम्न-अधिकारी-मण्डल इस विषयमें धोखेबाजीसे भरा हुआ है कि प्लेग कहाँ है।

अगर कोई भारतीय जहाज़ हो तो उसमें कोई गुप्त बात दिखलाई देनी ही चाहिए ! दूसरे सब स्थानोंके विपरीत, दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय होना ही रोगोंकी छूतका कारण माना जाता है। भारतीय और उनका माल-असबाब ही छूतको ला सकता है। दूसरे यात्रियोंके बारेमें कोई आपत्ति नहीं की जाती, भले ही वे किन्हीं छूतके जिलोंसे क्यों न आये हों। मादागास्कर और मारिशसको छूत-ग्रस्त बन्दरगाह घोषित कर रखा गया है। फिर भी, जहाज-कम्पनियाँ वहाँ यूरोपीय यात्रियोंको तो ला सकती हैं, मगर, क्या मजाल कि वे भारतीयोंको ले आयें। यह तो मंजूर करना ही होगा कि नेटाल तथा केपकी सरकारें आतंकके समयमें अन्याय न होने देनेके लिए अधिकसे अधिक उत्सुक हैं। परन्तु वे उन मतदाताओंसे जिनके, अपने पदोंके लिए, वर्तमान सदस्य ऋणी हैं, इतनी डरती हैं कि भारतीयोंको अनजाने, फिर भी निश्चित रूपसे, बहुत- सी अनावश्यक असुविधाएँ पहुँचाई जाती रहती हैं। ईश्वर हमें प्लेगके वास्तविक आक्रमणसे बचाये। अगर वह आ ही गया तो भारतीय ऐसी स्थितिमें पड़ जायेंगे जिसकी भीषणताकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसे ही मौकोंपर श्री चेम्बरलेनकी यह शोचनीय कर्तव्य-च्युति खलती है कि १८९७ के प्रारम्भमें डर्बनकी भीड़ की गैरकानूनी कार्रवाइयोंका उन्होंने कोई खयाल नहीं किया। उस समय बारह दिनोंके लिए सरकारने अपने कर्त्तव्य व्यावहारिक रूपमें भीड़के हाथों सौंप दिये थे। इस जैसे महाखण्डमें, जहाँ विभिन्न प्रजातियोंके विविध और परस्पर-विरोधी हित सन्निहित है, ब्रिटिश सरकारका प्रबल और शक्तिशाली प्रभाव सदैव आवश्यक है। एक बार विविध प्रजा- तियोंकी आबादीके किसी अंग-विशेषको छूट दी नहीं कि, कोई जान ही नहीं सकता कि कब उपद्रव उभड़ पड़ेगा। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, पोर्ट एलिज़ाबेथके लोगोंने पहलेसे ही धमकी दे रखी है कि अगर सरकारने अपनी इच्छाको उनकी इच्छाके अनुसार मोड़नेसे इनकार किया तो वे कानूनको अपने हाथोंमें ले लेंगे। डर्बनके समाचारपत्रोंमें इसी नीतिकी हिमायत करने- वाले गुमनाम पत्र प्रकाशित हो रहे हैं; और प्लेगके आतंकके, जो अभी मिटा नहीं है, इतिहासके विहगावलोकनकी परिसमाप्ति नेटाल मयुरीमें प्रकाशित पत्र-व्यवहारके निम्नलिखित उद्धरणसे बखूबी हो सकती है। यह उद्धरण दुनियाके इस हिस्सेमें जन-साधारणकी भावनाओंका खासा- अच्छा नमूना है:

यदि सरकार डरपोक और कार्रवाई करने में दुलमुल है तो जनता खुद अपना काम कर ले और फिरसे सामूहिक रूपमें जहाज-घाटपर जाये और इस बार तमाम एशिया- इयोंको उतरनेसे रोकनेके लिए वहाँ पड़ाव डाल दे। हम उन्हें यहाँ किसी भी कीमतपर नहीं चाहते। आपत्तिजनक भारतीयोंका प्रवास यहाँ सदा-सर्वदाके लिए बन्द हो जाने दीजिए; और, जो लोग यहाँ मौजूद हैं उनका रहना दूभर कर देनेके लिए अगर कोई जेहाद छेड़ो जाये तो मैं खुद उसमें शामिल हूँगा।

[अंग्रेजीसे]

टाइम्स ऑफ इंडिया (साप्ताहिक संस्करण), २२-४-१८९९ ।

१.देखिए खण्ड २, पृष्ठ १९७-३२० ।

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