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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कंगालोंके पेटमें दर्द हो। धनिक लोग हिन्दुस्तान में ही धन कमाते हैं। वे बाहरसे धन कमाकर धनवान नहीं होते। यों तो बाहरके लोगोंको दुःख देकर धन कमाना भी महापाप है। जितने करोड़पति या लखपति हिन्दुस्तान में हैं वे कंगालोंको और भी कंगाल बनाते हैं। हिन्दुस्तानके सात लाख देहात हैं। उनमें से कईका नाश हो रहा है। उनका खून चूसा जा रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि जिनको एक समय भी खानेको नहीं मिलता, वे लोग मर जाते हैं। इस देशमें पशु और मनुष्य दोनों मरते हैं। ऐसी हालतमें इतना ही धन खर्च करना चाहिए जो धर्मके लिए अनिवार्य हो। और बचा हुआ धन परोपकारमें व्यय करें, जिससे हिन्दुस्तानकें कंगालोंका भी भला हो और घनिकोंका भी भला हो। इस दृष्टिसे हम देखें तो यह विवाह अनुकरणीय है। यह एक सामान्य सुधार नहीं है। इसकी जड़ खूब गहरी जाती है। और इसका परिणाम भी अच्छा ही होगा। इस तरहका कार्य अगर गरीब करेगा तो भी उसका काम तो होगा ही, पर इतना प्रभाव नहीं पड़ेगा। जमनालालजी दस हजार, बीस हजार, और पचास हजार भी फेंक सकते हैं। और उनके मारवाड़ी भाई भी यह कहेंगे कि कैसा अच्छा विवाह किया! परन्तु उन्होंने धन होते हुए भी उसका उपयोग नहीं किया। अपने अधिकारको छोड़ दिया। इसका परिणाम अच्छा ही होगा। कारण, 'गीताजी' में भी लिखा है कि श्रेष्ठ लोग जो करते हैं, उसका अनुकरण दूसरे लोग करते हैं। यह सच्चा और अनुभवसिद्ध वाक्य है। मैंने आपका अनुग्रह माना है और मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। आप कमला और रामेश्वर प्रसाद दोनोंको आशीर्वाद देंगे। दूसरे भी ऐसा करेंगे तो अच्छी बात होगी। ऐसा करनेसे स्वतः ही मुल्ककी और धर्मकी सेवा होगी। रामेश्वर प्रसाद और कमला दोनों यहाँपर है, ऐसा मैं जानता हूँ। दोनों समझते हैं। रामेश्वर प्रसाद समझता ही है और कमला भी इस उमरकी हो गई है कि उसके माँ-बाप उसको मित्र-जैसी समझ सकते हैं। इन दोनोंको समझना चाहिए कि इनके माता-पिता जो इतना परिश्रम कर रहे हैं, इतने लोग साक्षी बनने के लिए यहाँ आये हैं सो यह विवाह स्वच्छन्दताके लिए नहीं। विकारका गुलाम बनने के लिए नहीं। यह दम्पती आदर्श बने; उनके ऊँचे भाव बढ़ाने के लिए ही यह सब कर रहे हैं। गृहस्थाश्रममें भी विकारको दबानेका मौका है। शास्त्र तो यह बताता है कि केवल प्रजाकी इच्छा होनेपर ही विकारवश हो सकते हो। इसको हम भूल गये हैं। और हमको यह बात कोई बतलाता नहीं। रामेश्वर प्रसादको यह बात मैं बतलाना चाहता हूँ कि स्त्री पुरुषकी गुलाम नहीं है। वह अर्धांगिनी है, सहधर्मिणी है। उसको मित्र समझना चाहिए। रामेश्वर प्रसाद स्वप्नमें भी कमलाको गुलाम न समझे। हिन्दू धर्ममें भी ऐसे लोग अभी हैं जो स्त्रीको अपना माल समझते हैं। ये दोनों नये जीवनमें प्रवेश करते हैं। मैंने एक बार कहा है, यह तो एक नया जन्म है। वह दम्पती शिव-पार्वती या सावित्री सत्यवान या सीता-रामके समान आदर्शभूत हो। हिन्दू धर्मने स्त्रियोंको इतना उच्च स्थान दिया है कि हम सीताराम कहते हैं, रामसीता नहीं, राधाकृष्ण कहते हैं, कृष्णराधा नहीं। अगर सीता नहीं होती तो रामको कोई नहीं जानता। अगर सावित्री नहीं होती तो सत्यवानका