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पत्र: जे० बी० पेटिटको

नाम भी कहीं सुनाई न देता। अगर द्रौपदी न होती तो पाण्डवोंका पता भी न चलता। दृष्टान्त खोजनेकी जरूरत नहीं है। मेरा विश्वास है कि यह कार्य हमको परिणामकारक होगा। मुझको ऐसा सोचनेका मौका नहीं आने पाये कि मैंने कैसा अकार्य किया। अभी मेरे आयुष्यके शेष दिन रहे हैं, उसमें मैं ईश्वरसे डरकर चलना चाहता हूँ। जो-कुछ करता हूँ, अपनी अन्तरामाको पूछकर करता हूँ। मेरी अन्तरात्मा कहती है कि यह दम्पती हमारे लिए आदर्श होगी, हमको पश्चात्तापका कोई मौका नहीं देगी। अन्त में इन दोनोंको आशीर्वाद देता हूँ कि ये दोनों दीर्घायु हों और अपने वडीलोंको भी सुशोभित करें और धर्मकी रक्षा तथा देशकी सेवा करें।

हिन्दी नवजीवन, ४-३-१९२६

७०. पत्र: जे० बी० पेटिटको

साबरमती आश्रम
२ मार्च, १९२६

प्रिय श्री पेटिट,

आपका पत्र मिला। मुझे दो तार मिले हैं, जिनमें लगभग वही बातें हैं, जो आपको मिले तारमें कही गई हैं। मैं इन तारोंको खास महत्त्व नहीं देता। इसी लिए मैंने उन्हें आपके पास नहीं भेजा।

आजकल दक्षिण आफ्रिकामें हमारे देशभाइयोंके बीच काफी कलह चल रहा है। समाज कई गुटोंमें बँट गया है। इस समय वहाँ श्री एन्ड्रयूजका उपस्थित रहना ईश्वरका वरदान ही समझिए।

दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेस कई संस्थाओंको मिलाकर बनी है। नेटाल भारतीय कांग्रेस एक ऐसी संस्था है जो नेटालवासी भारतीयोंके एक वर्गका प्रतिनिधित्व करती है। ब्रिटिश भारतीय संघ ट्रान्सवालके भारतीयोंका प्रतिनिधित्व करता है।

इस समय मेरी सलाह यह है कि आप प्राप्त तारोंकी ओर ध्यान न दें और साथ ही मंजूर राशिका बकाया अंश जबतक न अदा करें, तबतक कि पहले ही दिये गये ३९,५०० रुपयेका सही-सही हिसाब आपको न मिल जाये।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११९४४) की फोटो-नकलसे।