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पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

मैं आपका पत्र फाड़ रहा हूँ। कृपया अब भी, जब आपको समय मिले, अवश्य आइए; लेकिन इसके लिए अपने पास कमसे-कम दो-तीन दिनका समय रखिए, ताकि हम सुभीतेसे बातचीत कर सकें। और आप चाहे श्रमिक सम्मेलनमें जायें या न जायें, यह सचमुच बड़ा अच्छा होगा कि आप समुद्र-यात्रा करें और किसी ऐसे शान्त स्थानमें आराम करें जो आपको आनन्दप्रद लगे। मुझे तो आरामके साथ-साथ राजनैतिक कार्य करते रहनेका आपका विचार ठीक नहीं लगता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि इस तरह आप काममें जुट जायेंगे और अपनेको आराम नहीं देंगे। इसलिए यदि आप जायें तब आपसे यह वचन ले ही लिया जाना चाहिए कि आप कोई राजनीतिक कार्य नहीं करेंगे; केवल विश्राम करेंगे और खुश रहेंगे।

हृदयसे आपका,

लाला लाजपतराय
दिल्ली

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३४१) की फोटो-नकलसे।

७२. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

२ मार्च, १९२६

जबतक तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक नहीं होता तबतक देवदास वहाँ रहनेके लिए तैयार है ही—ऐसा करने से उसके विकास में बाधा पहुँचती है—यह बात वह स्वयं नहीं मानता और सेवा करते हुए किसीका विकास अवरुद्ध हो जाता है, यह मैंने कभी नहीं माना। अध्ययन आदि साध्य नहीं वरन् साधन है। सेवा तो लगभग साध्य वस्तु है। अध्ययनके द्वारा आजतक कोई भी मनुष्य मोक्ष प्राप्त नहीं कर सका है। सेवा करके तो अनेक भवसागरसे तर गये हैं और तर रहे हैं। इस बातको समझना और समझकर अमलमें लाना कठिन अवश्य है; लेकिन मोक्ष मिलना क्या आसान है?

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी