पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/१०६

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७३. पत्र: ए० ए० पॉलको

साबरमती आश्रम
३ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मै चीन जाना पसन्द करूँगा, लेकिन मैं नहीं समझता कि मैं चीनी मित्रोंकी कोई विशेष सेवा कर सकूँगा। फिर भी क्या आप कृपया मुझे बतायेंगे कि श्री टी० जेड० कू० कौन हैं और मुझे कहाँ जाना होगा और मुझे इस यात्राके लिए कितना समय देना होगा?

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्री ए० ए० पॉल
७, मिलर रोड, किलपॉक, मद्रास

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ११३६३) की फोटो-नकलसे।

७४. पत्र: मौलाना मुहम्मद शफीको

साबरमती आश्रम
३ मार्च, १९२६

प्रिय शफी साहब,

आपका पत्र मुझे तभी मिल गया था, जब पण्डित मोतीलालजी यहाँ थे। मैंने पत्र उन्हें दिखलाया और उसपर उनसे बातचीत की। मैंने आपका पत्र राजेन्द्रबाबूको भी दिखलाया। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि सीमा-प्रान्तके प्रति वैसा ही व्यवहार होना चाहिए जैसा कि किसी भी अन्य प्रान्तके साथ, लेकिन कांग्रेसीके नाते हमें उन सुधारोंके वहाँ भी लागू किये जानेकी माँग नहीं करनी चाहिए, जिनकी हम सर्वथा असन्तोषजनक और अपर्याप्त कहकर निन्दा करते हैं।

मैंने मोतीलालजीको एक पत्र लिखा है, जो शायद उन्होंने आपको तथा अन्य मित्रोंको अवश्य दिखलाया होगा। उसमें इस दुर्भाग्यपूर्ण मामलेके बारेमें अपनी राय मैंने पूरी तरह बता दी है।

हृदयसे आपका,

मौलाना मुहम्मद शफी
दिल्ली

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३४२) की फोटो-नकलसे।