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७५. पत्र: गोपालदासको

साबरमती आश्रम
बुधवार, फाल्गुन बदी ४ [३ मार्च, १९२६]

भाई गोपालदास,

तुम्हारा पत्र मिला। उपवास सब रोगोंका इलाज नहीं। तुम्हारे रोगका इलाज तो फिलहाल यह हो ही नहीं सकता, ऐसा मेरा विश्वास है। तुम कमजोर हो अथवा तुम्हें बुरी आदतें पड़ गई हैं, तुम्हें ऐसा खयाल भी न करना चाहिए और हमेशा प्रसन्न रहना चाहिए। रातको समयपर सो जाना और सुबह जल्दी उठना। तुम्हारी पत्नी तुम्हारी बात न माने तो इसकी भी चिन्ता न करना। वह प्रेमपूर्वक समझानेसे न समझे तो उसे अपने रास्ते जाने देना। तुम अपना मार्ग न छोड़ो और झगड़ा न करो तो वह किसी दिन यह देखकर कि तुम्हारा मार्ग उत्तम है, समझ जायेगी और कदाचित् उसके अनुसार आचरण भी करेगी। न भी करे तो उद्विग्न न होना। बहन हो, माँ हो, भाई हो अथवा मित्र हो, यदि हमारी इच्छानुसार नहीं चलते तो फिर उनके सम्बन्धमें हम निश्चिन्त रह सकते हैं। लेकिन अपनी पत्नीके सम्बन्धमें हम वैसा नहीं करते। यह हमारा मोह है। तुम इस मोहसे मुक्त होना।

अपनी खुराक सादी रखना। मिर्च आदि छोड़ देना। नित्य ठण्डे पानी से नहानेकी आदत न हो तो डालना और बुरे विचारों और बुरे स्वप्नों आदिसे बचनेके लिए श्रद्धापूर्वक रामनाम जपना। यदि हो सके तो 'भागवत्' के एकादश स्कन्धका पाठ विचारपूर्वक करना और उसपर भली भाँति मनन करना।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १०६०८) की फोटो-नकलसे।

७६. टिप्पणियाँ

किशोरोंके लिए

अठारह वर्षसे कम उम्रके मेरे किशोर मित्र बार-बार आग्रह करते रहे हैं कि उन्हें भी अखिल भारतीय चरखा संघका सदस्य बनाया जाये। फलतः संघकी परिषद्ने अपनी पिछली बैठकमें एक प्रस्ताव पास करके उन्हें इसकी सुविधा कर दी है। प्रस्तावके अनुसार अठारह वर्षसे कम उम्रके जो लड़के और लड़कियाँ नियमित रूपसे खादी पहनते हैं, वे प्रति मास अपना काता हुआ एक हजार गज सूत भेजकर संघके सदस्य बन सकते हैं। इसके पीछे विचार यह है कि लड़के और लड़कियोंको नियमपूर्वक काम करनेकी आदत पड़े और उन्हें देशके गरीबसे-गरीब लोगोंके साथ