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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तादात्म्य स्थापित करनेके लिए प्रोत्साहन दिया जाये। और कताईकी कला आँख और अँगुलियोंके लिए तो एक अच्छा अभ्यास है ही, ऊपरसे उससे यह अमूल्य लाभ भी मिलेगा।

सदस्य बननेकी इच्छा रखनेवाले किशोरोंसे प्रतिदिन कमसे कम आधे घंटे तक कात की अपेक्षा की जायेगी, और अगर वे इस कामके लिए आधे घंटेका एक खास समय निश्चित कर लें, तो वे देखेंगे कि इससे उनकी पढ़ाई-लिखाई और दूसरे जो भी काम वे अपने हाथमें लेंगे, सबमें नियमितता आ जायेगी। उनसे अपने चरखेको बिलकुल ठीक-ठाक रखने, उसकी मरम्मत करना सीखने और धुनाई तथा अपनी जरूरत की पूनियाँ तैयार करना सीखनेकी भी अपेक्षा की जायेगी। जो लोग अपने कामको मनसे करते हैं, वे देखेंगे कि इन तमाम क्रियाओंमें बहुत कम समय लगता है।

स्कूली लड़कों और लड़कियोंसे मैं चरखा नहीं, बल्कि तकली चलानेको कहूँगा। ऐसा पाया गया है कि तकलीपर प्रति घंटा ८० गज सूत आसानीसे काता जा सकता है । इस तरह प्रति-दिन आधा घंटा तकली चलानेसे १००० गज सूतका मासिक चन्दा पूरा हो जाता है।

तो अब मैं आशा करता हूँ कि बहुत-से लड़के और लड़कियाँ सदस्योंके रूपमें अपने नाम दर्ज करवायेंगे। हाँ, इसके लिए उन्हें पहले अपने-अपने माता-पिताओं या अभिभावकोंसे अनुमति ले लेनी चाहिए। जहाँतक स्कूलोंका सम्बन्ध है, अगर हर स्कूलके लड़कों और लड़कियोंके काते सूतकी जिम्मेदारी उस स्कूल शिक्षक ही ले लें और सारा सूत एक ही पैकेटमें बन्द करके भेज दें तो डाक-खर्चमें बहुत बचत होगी। हाँ, वे हर लड़के या लड़कीके काते सुतके साथ एक पर्चीपर उसकी मात्रा लिख देना न भूलें। ये पार्सल डायरेक्टर, टेक्निकल डिपार्टमेन्ट, अखिल भारतीय चरखा संघ, सत्याग्रहाश्रम, साबरमतीके पतेपर भेजे जायें।

लड़के और लड़कियाँ अथवा उनके अभिभावक खुदका काता सुत भेजते समय उसके साथ एक कागजपर कातनेवालेका नाम, उम्र, यह कि वह स्त्री है या पुरुष और पता लिख भेजें। वे उसपर यह भी लिख दें कि कितने गज सूत भेज रहे हैं और साथ ही यह भी बतायें कि कातनेवाला नियमपूर्वक केवल हाथ-कती और हाथ-बुनी खादी पहनता है।

स्वयं कातनेवालोंके लिए

अखिल भारतीय चरखा संघके टेक्निकल डिपार्टमेंट के डायरेक्टरने लिखा है कि सदस्यगण उन्हें बार-बार इस आशय के पत्र लिख रहे हैं कि वे उनका काता हुआ सूत लौटा दें, ताकि सदस्यगण उसे बुनवाकर निजी उपयोगमें ला सकें। इसके लिए वे उचित कीमत देनेको तैयार हैं। मन्त्री यह जिम्मेदारी अपने सिर लेने को तैयार थे कि वे उनके सुतसे खादी तैयार करा कर उन्हें दे देंगे, बशर्ते कि उनका सूत कम हो तो उसके साथ दूसरोंका हाथ-कता सूत मिला दिये जानेपर उन्हें कोई आपत्ति न हो। लेकिन दूसरोंका सूत मिलानेका सुझाव सदस्योंको स्वीकार्य नहीं था, क्योंकि वे पूरी तरह से खुदके काते सूतका वस्त्र पहननेके सन्तोषसे वंचित होना नहीं चाहते