पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुए कहते हैं कि लेफ्टिनेंट कर्नल मलवेनीके वक्तव्यको समितिने स्वीकार ही कहाँ किया। सरकार इस निश्चित विश्वासके साथ झूठ और गलत बयानियोंकी आड़ लेकर अपनी संगीनोंकी शक्तिके बलपर हमारी शिकायतोंको तिरस्कार और उपेक्षाके भावसे देखती है कि कैदियोंकी नजरबन्दी और उनके साथ दुर्व्यवहार करना उन अंग्रेजोंकी सुरक्षाके लिए आवश्यक है जिनका कि वह प्रतिनिधित्व करती है।

विरोधके तौरपर वंगालने एक दिनके लिए हड़ताल करने की घोषणा की है। नपुंसकों द्वारा की जानेवाली हड़तालोंकी सरकारको कोई परवाह नहीं है। वह सिवाय तलवारको शक्ति या आत्मबलके और किसी दलीलपर कान नहीं देती। तलवारकी शक्तिको वह जानती है और उसका सम्मान करती है, आत्मबलको वह नहीं जानती और इसलिए उससे डरती है। हमारे पास तलवारका जोर नहीं है। १९२१ में हम समझते थे कि हमारे पास आत्माका बल है। लेकिन आज—?

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-३-१९२६

८१. पत्र : हरिभाऊको

साबरमती आश्रम
४ मार्च, १९२६

प्रिय हरिभाऊ,

मगनलालसे तुम्हारा सन्देशा मिला। यदि पूनामें कोई विशेषज्ञ नियुक्त किया जा सकता है, तो वह भेज दिया जायेगा; लेकिन मैं तुम्हारे तर्कका प्रतिवाद करना चाहता हूँ। हम लोग डनलप या सिंगर-जैसे [पूँजी-सम्पन्न] लोग नहीं हैं। हमारे पास ऐसी अक्षय पूँजी नहीं है कि उसे गँवाने से हमारा कुछ बने-बिगड़े नहीं। वे जैसा शोषण करते हैं, वैसा हम नहीं कर सकते। हम मूल लागतमें हजार फीसदी और नहीं जोड़ सकते। इसलिए हमारे तरीके उनके तरीकोंसे अलग होने चाहिए। यदि हम चरखे और उसके हिस्सोंके निर्माणके लिए एक केन्द्रीय कारखानेपर ही अपनी सारी शक्ति लगा देंगे तो इस आन्दोलनका असफल होना निश्चित समझो। इसके विपरीत हमें लोगों को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए और इसलिए उन्हें खुद अपने चरखे तैयार करना सिखाना चाहिए। विकेन्द्रीकरणकी यह शिक्षा प्रान्तके स्तरसे ही शुरू हो सकती है, और इसलिए तुम साबरमती, अर्थात् केन्द्रीय बोर्डसे जो कुछ करने की आशा करते हो, वह तुम्हीं लोगोंको करना चाहिए।

महाराष्ट्रको प्रशिक्षण देकर अपने विशेषज्ञ खुद ही तैयार करने चाहिए। वे लोग प्रान्तके अलग-अलग इलाकों में फैल जायें और फिर इस काममें लोगोंकी मदद करते हुए वे उन्हें प्रशिक्षित भी करें। जिन लोगोंको चरखेमें विश्वास है, उन्हें केवल सूत कातकर सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए, वरन् चरखेकी यन्त्र-प्रणालीको खुद