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पत्र: जवाहरलाल नेहरूको

समझना चाहिए, ताकि वे स्वयं ही उसे ठीक कर सकें, जरूरत पड़ने पर उसके हिस्से बदल सकें। उन्हें चमरखों, तकुओं आदिको बनाने और ठीक ढंगसे लगानेकी तमाम सरल विधियाँ सीख लेनी चाहिए। जो काम अपने-आपमें आसान है, उसको लोगोंसे ऐसा कहकर कठिन नहीं बनाना चाहिए कि अपने चरखे बिगड़ जानेपर ठीक करानेके लिए उनको हमारे पास आने की जरूरत है। इसलिए मेरा सुझाव है कि अब तुम लोग आत्म-निर्भर और स्वावलम्बी बनने का प्रयत्न करो और इस प्रक्रियामें जैसी भी मददकी जरूरत हो, वह सब यहाँसे लेते रहो। खादीके काममें हम अब ऐसी अवस्थामें पहुँच गये हैं जब वह दिन-दुगुनी और रात चौगुनी प्रगति कर सकता है। शर्त इतनी ही है कि हम जो थोड़े-से कार्यकर्ता हैं वे सब उससे सम्बन्धित विभिन्न कार्यों अपने-आपको दक्ष बना लें। ऐसी दक्षता प्राप्त करनेमें न तो बहुत ज्यादा समयकी और न असाधारण बुद्धि या योग्यताकी ही जरूरत है। केवल लगन और अध्यवसायकी ही जरूरत है।

तुम्हारे पत्रकी शेष बातोंका उत्तर मगनलाल दे रहा है।

तुम्हारा,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३४३) की माइक्रोफिल्मसे।

८२. पत्र: जवाहरलाल नेहरूको

साबरमती आश्रम
५ मार्च, १९२६

प्रिय जवाहरलाल,

तुम्हारा पहली तारीखका पत्र मिला। यद्यपि तुम डॉ० मेहताके लिए भी पत्र लिखकर छोड़ गये थे, फिर भी उसे और पक्का करनेके लिए मैंने भी उन्हें लिखा है। मैं आशा करता हूँ कि जहाजपर कमलाका स्वास्थ्य बिलकुल ठीक रहा होगा। क्या तुम सबको समुद्र-यात्रासे लाभ हुआ? अधिक लिखनेके लिए समय नहीं है।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स
 
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