पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/११८

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८३. पत्र : के० बी० मेननको

साबरमती आश्रम
५ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं आपके सभी शुभ प्रयत्नोंमें पूरी सफलताको कामना करता हूँ। तथापि मुझे आपकी संस्थाका संरक्षक बननेका लोभ संवरण करना ही होगा। मैं अपने जीवनमें एक भी ऐसा उदाहरण याद नहीं कर पाता, जब मैंने किसी ऐसी संस्थाका संरक्षक पद स्वीकार किया हो, जिसे मैं खुद न जानता होऊँ और जिसके लिए मैंने कुछ काम न किया हो या कुछ काम कर न सकूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्रीयुत के० बी० मेनन

मन्त्री
सन्स ऑफ भारत

पो० ऑ० बॉक्स ४७७, बर्कले, कैलिफ, यू० एस० ए०

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १२४२३) की फोटो-नकलसे।

८४. पत्र : एलिस मैक्के केलीको

साबरमती आश्रम
५ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका सुन्दर पत्र मिला। कृपया लीगके सदस्योंको बताइए कि भारतकी मदद करनेका सबसे अच्छा तरीका यह है कि वे लोग भारतकी समस्याका सही अध्ययन करें। यह अध्ययन अखबारोंसे या अखबारी ढंगसे नहीं किया जा सकता है। इसके लिए उन्हें अध्यवसायी विद्यार्थियोंकी तरह धैर्यपूर्वक और विनीत भावसे प्रयत्न करके वास्तविकताको मूल सूत्रोंसे जानना-समझना होगा।

आपने यह इच्छा प्रकट की है कि मैं अमेरिका आऊँ। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं भी उतना ही इच्छुक हूँ, लेकिन जबतक अन्तरात्माका निश्चित निर्देश नहीं मिलता, तबतक तो मुझे प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी।