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पत्र : एडविन एम० स्टैंडिंगको

अपने पिछले पत्रमें आपने मुझसे मेरा एक हस्ताक्षरयुक्त फोटो माँगा है। क्या आपको मालूम था कि मैं अपना कोई फोटो नहीं रखता? पिछले दस वर्षोंसे मैंने खास तौरसे बैठकर अपना कोई फोटो नहीं खिंचवाया है; और जब खिंचवाता था तब भी मैं अपने फोटो नहीं रखता था। इसलिए मुझे खेद है कि आपको निराश करना पड़ रहा है।

हृदयसे आपका,

कुमारी एलिस मैक्के केली

१२००, मैडिसन एवेन्यू

न्यूयार्क सिटी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४२७) की फोटो-नकलसे।

८५. पत्र : एडविन एम० स्टैंडिंगको

साबरमती आश्रम
५ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और फोटो-चित्र पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। मैं सोच रहा था कि पता नहीं आप कहाँ हैं और आपको मेरा पत्र मिला भी या नहीं। 'यंग इंडिया' के लिए आपका नाम दर्ज करवा रहा हूँ। आशा है, वह आपको नियमित रूपसे मिलता रहेगा।

हाँ, आपका खयाल ठीक ही है। अभी एक साल में आश्रममें ही रहकर आराम करूँगा। ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि मैंने एक सालके लिए राजनीतिसे बिलकुल संन्यास ले लिया है, लेकिन मेरी राजनीतिक प्रवृत्तियाँ, यहाँ आश्रम में रहकर मैं जितना-कुछ कर सकता हूँ, उतने ही तक सीमित हैं।

मैंने आपसे कौन-सा फोटो देनेका वादा किया था? अगर खुद अपना फोटो देनेका वादा किया था तब तो मुझसे समझने में कोई गलती हो गई होगी, क्योंकि मेरा खयाल था कि आप यह जानते हैं कि मैं अपना कोई फोटो अपने पास नहीं रखता। कहनेको मेरी कुछ तसवीरें हैं जरूर—वे जो बाजारमें बिकती हैं। मगर आप उन विरूप चित्रोंको तो नहीं ही चाहेंगे।

थियोसॉफिकल सोसाइटीकी प्रवृत्तियोंमें में कोई दिलचस्पी नहीं लेता।

आपकी मान्यता तो यह मालूम होती है कि अच्छी बातोंको समझानेके लिए बहुत ज्यादा कहने और लिखने की जरूरत होती है और अपना आनन्द तथा सन्तोष व्यक्त करनेके लिए तो उससे भी ज्यादाकी। मैं आपकी इस मान्यतासे सहमत नहीं हूँ। इसके विपरीत, मैंने तो यह पाया है कि जब तर्क ठोस और शुद्ध होते हैं तब