पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्हें संक्षेपमें चन्द पंक्तियोंमें बखूबी समझाया जा सकता है, और सच्चे आनन्दकी या तो अभिव्यक्ति ही नहीं हो सकती या हो भी सकती है तो उसके लिए अकसर एक-दो शब्द काफी होते हैं। इसलिए मैं अब भी आपसे यह अनुरोध करूँगा कि अगर आप बताना चाहें तो बताइए कि किन कारणोंसे आपने कैथोलिक मतको स्वीकार किया और अगर बन सके तो इसने आपको जो अनन्त आनन्द प्रदान किया है, उसका भी रहस्य बताइए। मैं यह सवाल व्यर्थके कुतूहलके कारण नहीं, बल्कि रोमन कैथोलिक धर्मका अर्थ और उसका माहात्म्य समझने के उद्देश्यसे ही पूछ रहा हूँ। मैं यहूदी धर्मको कुछ-कुछ समझता हूँ, लेकिन जितना समझता हूँ उतना मेरे कामके लिए काफी है। प्रोटेस्टेंट धर्मको में और भी अच्छी तरह समझता हूँ; इस्लामको भी समझता हूँ और हिन्दू वर्मको तो समझता ही हूँ; किन्तु, यद्यपि कुछ रोमन कैथोलिक मेरे मित्र भी थे, फिर भी मैं उनके इतना नजदीक कभी नहीं आ पाया कि कैथोलिक मतको समझ लेता। दोनों सम्प्रदायों के बाहरी अन्तरको में समझता हूँ। लेकिन, मैं जो चाहता हूँ वह यह कि कैथोलिक धर्मके मर्मतक पहुँच सकूँ। आप शायद मेरी मदद कर सकें। इसीलिए यह सवाल पूछा है।

श्री अम्बालाल और श्रीमती अम्बालाल मुझसे अकसर मिलते रहते हैं। बच्चे भी। वे बड़े हो रहे हैं। मृदुला तो सयानेपनमें लगभग औरतों जैसी हो गई है। मैं आपका पत्र सरला देवीको भेज दूँगा; क्योंकि मुझे मालूम है कि आपका समाचार सुनकर उनको बड़ी प्रसन्नता होती है।

हृदयसे आपका,

एडविन एम० स्टैंडिंग

सेफ्टन प्लेस, अरुण्डेल

ससेक्स, इंग्लैंड

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२४३८) की फोटो-नकलसे।

८६. पत्र : मौलाना एम० मुजीबको

साबरमती आश्रम
५ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मुझे खुशी है कि आप सब मुस्लिम विश्वविद्यालयमें लग गये हैं। मुझे याद है, जाकिरने[१] लिखा था। चूँकि मैं आपको हकीम साहब और ख्वाजा साहबके जरिये जानता हूँ, इसलिए मैं आपसे बड़ी-बड़ी आशाएँ रखता हूँ। बेशक, मैं आपसे मिलना और बात करना चाहूँगा और इस तरह व्यक्तिगत रूपसे आपका परिचय प्राप्त करके मुझे बड़ी खुशी होगी। मुझसे मिलनेका एक ही रास्ता है

 
  1. जाकिर हुसैन (जन्म १८९७) कई वर्धीतक भारतके उपराष्ट्रपति और मई, १९६७ से राष्ट्रपति।