पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/१२२

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८८. पत्र : जे० वी० बेथमैनको

साबरमती आश्रम
५ मार्च, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं जो 'आत्मकथा' लिख रहा हूँ, उसके अनुवादके लिए अनेक प्रार्थनापत्र आये हैं, लेकिन अभीतक मैंने उसका सर्वाधिकार किसीको नहीं दिया है।

कोपेन हेगेनकी वे महिला यदि सर्वाधिकारका दावा किये वगैर अनुवाद करनेमें सन्तुष्ट हैं तो वे अनुवाद कर सकती हैं।

आपने मेरे स्वास्थ्यके विषयमें पूछा है। इस कृपाके लिए मैं आपको और श्रीमती बेथमैनको धन्यवाद देता हूँ। मेरा स्वास्थ्य सुधर रहा है।

आपको और श्रीमती बेथमनको मेरा स्नेह-वन्दन।

हृदयसे आपका,

रेवरेंड जे० वी० बेथमैन

२०, मिलर रोड, किलपॉक

मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३४६) की माइक्रोफिल्मसे।

८९. पत्र : कृष्णदासको

साबरमती आश्रम
५ मार्च, १९२६

प्रिय कृष्णदास,

तुम्हारे दो पत्र मिले। मैं जानता हूँ कि गुरुजीको मौजूदा हालत देखकर कैसा महसूस होता है। ईश्वरकी लीला अपरम्पार है; और मुझे कोई सन्देह नहीं कि आज हमारे सिर कठिनाइयोंके जो बादल मँडरा रहे हैं, समय आनेपर छट जायेंगे। तुम प्रार्थनापूर्ण मनसे कार्य करते हुए उस शुभ स्थितिके जल्दी आने में सहायक हो सकते हो। मेरे स्वास्थ्यके सम्बन्धमें गुरुजीकी चिन्ता भी मैं समझता हूँ। इस पृथ्वीपर जबतक मेरी जरूरत है, तबतक यह शरीर ठीक बना रहेगा। हम लोग जितनी सावधानी उचित रूपसे बरत सकते हैं, उतनी सावधानी बरतें, बस यही हमारा काम है, और वह में कर रहा हूँ।

मुझे खुशी है कि गुरुजी फिर काफी बेहतर हो गये हैं।