जायेगी। मेरी रायमें, आपने अस्पृश्यता के विरुद्ध वर्तमान आन्दोलनको भी सही ढंगसे नहीं पेश किया है।
हृदयसे आपका,
१० डी०, क्वीन्सवे
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९३४९) की माइक्रोफिल्मसे।
९३. पत्र : शिवाभाई जी० पटेलको
साबरमती आश्रम
शनिवार, फाल्गुन बदी ७, १९८२ [६ मार्च, १९२६]
भाई शिवाभाई,
बीमार होनेके कारण तुम्हारे पत्रका उत्तर जल्दी नहीं दे सका। किसीके असहयोगको धर्म माननेका अर्थ यह है कि वह सहयोग करना पाप समझता है। धर्मकी यह विशेषता है कि वह हमें [कर्त्तव्यके] अमुक बन्धनोंमें बांधता है। उस बन्धनका उल्लंघन-मात्र पाप है। सरकारसे सम्बन्ध रखकर कोई भी संस्था देशकी कुछ भी सेवा नहीं कर सकती, यह कहनेमें अतिशयोक्तिका दोष होता है; लेकिन जितना अधिक सम्बन्ध होगा, सेवा उतनी ही कम होगी, ऐसा तो अवश्य कहा जा सकता है।
तुम्हारे अन्तिम प्रश्नका एकाएक उत्तर देना मुश्किल है। मुझसे मिलोगे तो खुलासा कर सकूँगा। सोमवारके अलावा दूसरे दिनोंमें समय सायं चार बजेका है। में ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले पतिके लिए पत्नीको दूर रखने की आवश्यकता नहीं समझता। हाँ, उसके साथ एकान्त वासका त्याग अवश्य दृढ़तापूर्वक किया जाना चाहिए।
मोहनदासके वन्देमातरम्
सौजन्य: शिवाभाई पटेल