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विशुद्ध धार्मिक विधिसे

३. रायस्पोषाय त्रिपदी भव। सा मामनुव्रता भव।

कल्याणकी वृद्धिके लिए तीसरा कदम भर। मेरा व्रत पूर्ण करने में मेरी मदद कर।

कन्या: मैं आपके सुखमें सुखी और आपके दुःख दुःखी हूँगी।

४. मायोभव्याय चतुष्पदी भव। सा मामनुव्रता भव।

आनन्दमय बननेके लिए चौथा कदम भर। मेरा व्रत पूर्ण करने में मेरी मदद कर।

कन्या : मैं सदैव आपकी भक्ति में तत्पर रहूँगी, सदा प्रिय बोलूँगी, सदा आपका आनन्द चाहूँगी।

५. प्रजाभ्यः पंचपदी भव। सा मामनुव्रता भव।

प्रजाकी सेवाके लिए पाँचवाँ कदम भर। मेरा व्रत पूर्ण करनेमें मेरी मदद कर।

कन्या: मैं आपके प्रजा-सेवाके व्रतमें पग-पगपर आपके साथ रहूँगी।

६. ऋतुभ्यः षट्पदी भव। सा मामनुव्रता भव।

नियम पालनके लिए छठा कदम भर। मेरा व्रत पूर्ण करने में मेरी मदद कर। कन्या: मैं यम-नियमोंके पालनमें आपकी अनुगामिनी बनूँगी।

७. सखा सप्तपदी भव। सा मामनुव्रता भव।

हम दोनोंमें परस्पर मंत्री रहे, इसके लिए सातवाँ कदम भर । मेरा व्रत पूर्ण करने में मेरी मदद कर।

कन्या: यह मेरे पुण्यका फल है कि आप मेरे पति हुए। आप मेरे परममित्र हैं, परम गुरु हैं, परम देवता हैं।

कन्याका पिता कहता है:

यस्त्वया धर्मचरितव्यः सोऽनया सह।
धर्मे चार्थे च कामे च नातिचरितव्या॥

तुम्हें जो धर्माचरण करना हो वह इस कन्या के साथ हो करना। धर्ममें, अर्थमें, काममें इस कन्या के साथ एकनिष्ठ रहना। व्यभिचार न करना।

वरः नातिचरामि, नातिचरामि, नातिचरामि॥

धर्म, अर्थ, काममें व्यभिचार नहीं करूँगा, नहीं करूँगा, नहीं करूँगा।

यदि अन्य घनवान् मारवाड़ी सज्जन इस विवाहका अनुकरण करें तो कितना धन बचे, कितना आडम्बर कम हो, वर, कन्या व मातापिता कितनी झंझटोंसे बच जायें और कितनी धर्मवृद्धि हो?

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-३-१९२६