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९६. पत्र : सरोजिनी नायडूको

साबरमती आश्रम
९ मार्च, १९२६

प्रिय मीराबाई, [१]

जोहानिसबर्ग से आये तारकी एक नकल मैं पत्रके साथ भेज रहा हूँ। इसका सारांश मैंने तार द्वारा सोराबजीको भेज दिया है, लेकिन मैंने सोचा कि आपको तारका पूरा ही पाठ मिलना चाहिए। मैंने यह जवाब दिया है: "दिल्ली समितिके निर्णयकी प्रतीक्षा करें।" यह जवाब मैंने सोराबजीको दिये गये अपने आश्वासनको ध्यानमें रखते हुए दिया है। मैंने उन्हें यह आश्वासन दिया था कि लगता है, वहाँ समितिका गठन हो चुका है और दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंको में ऐसी कोई सलाह नहीं दूँगा जो, वह समिति जो-कुछ कहे या करे, उसके विरुद्ध हो।

तथापि मेरी अपनी यह राय बरकरार है कि विधेयकके सिद्धान्ततक पर गवाही देने से कतई इनकार करके हम खुद गलती कर रहे हैं। गवाही देनेमें जो आपत्तियाँ हैं, उन्हें भी मैंने सुना है। कहा जाता है कि हमारे लोग जिरहमें टिक नहीं पायेंगे और दक्षिण आफ्रिकाम इतनी योग्यता और अनुभववाला कोई भारतीय नहीं है जो गवाही दे सके। इसका तो साफ-सीधा जवाब यह है कि किसी भारतीयको गवाही देने की जरूरत ही नहीं है। जैसा कि आप देखेंगी, प्रवर समितिने एक लिखित अभिवेदन माँगा है। ऐसा अभिवेदन तैयार किया जा सकता है और हम एक सॉलिसिटर नियुक्त कर सकते हैं, जो हमारी ओरसे जिरहमें खड़ा हो और जवाब दे। ऐसा सॉलिसिटर या वकील चुनने में जो कठिनाई है, उसे मैं समझता हूँ, लेकिन यह कोई असम्भव काम नहीं है। एडम अलेक्जेन्डर इस कामके लिए बुरे नहीं रहेंगे। वे काफी ईमानदार व्यक्ति हैं और उनकी सहानुभूति हमारे साथ है। ऐसे कुछ और लोगोंके नाम भी सोचे जा सकते हैं, जो समाजको किसी प्रकारसे अटपटी स्थितिमें डाले बिना या उसके साथ धोखेबाजी किये बगैर गवाही दे सकते हैं। मैं जो कहना चाहता हूँ वह यह कि भले ही प्रवर समितिसे हमारा कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं हो, फिर भी हमें उनको यह कहनेका मौका नहीं देना चाहिए कि हमें अवसर दिया गया और फिर भी हमने गवाहीतक नहीं पेश की। कोई कह सकता है कि १९१४ में मैंने भी तो सॉलोमन आयोगका बहिष्कार किया था। किन्तु, मेरे वैसा करनेका सीधा-सादा कारण यह था कि उस समय भारतीय समाजने एक पवित्र संकल्प किया था कि यदि सरकार आयोगके विचारार्थं विषयोंका विस्तार नहीं करती है और समाजकी ओरसे एक प्रतिनिधि उसमें नियुक्त नहीं करती है तो आयोगका बहिष्कार किया जायेगा। इसलिए उस निश्चयके अनुसार मैंने वैसा किया। और इस सिलसिले

 
  1. मीराबाईकी ही तरह श्रीमती नायडु कवयित्री थीं।