९८. तार : हाजीको[१]
[साबरमती
१० मार्च, १९२६ को या उसके पश्चात्]
साउथ आफ्रिकन कांग्रेस
डर्बन
गांधी
अंग्रेजी तार (एस० एन० ११९४७) की फोटो-नकलसे।
९९. एन्ड्रयूजकी व्यथा
पाठकगण भी चार्ली एन्ड्रयूजका पत्र, जो मैं नीचे दे रहा हूँ, पढ़ना चाहेंगे। यह उदारमना अंग्रेज, अकसर लोगोंकी गलतफहमियोंका शिकार होकर भी, भारतमें या उसके बाहर जिस निस्स्वार्थ भाव और निष्ठासे हमारी लड़ाई लड़ता रहा है, उसकी बराबरी करना कठिन है और उससे अधिक निस्स्वार्थ भाव और निष्ठाका परिचय देना तो असम्भव ही है। हमें शायद कभी नहीं मालूम हो पायेगा कि अपनी संकटकी घड़ीमें उन्हें अपने बीच पाकर हमारे दक्षिण आफ्रिकावासी देशभाइयोंको कितना संतोष, कितना बल प्राप्त हुआ है। केप टाउनसे २३ फरवरीको लिखा उनका यह पत्र, एक भी शब्दका हेर-फेर किये बिना, नीचे दिया जा रहा है:[२]
यह सचमुच मेरे लिए एक ऐसी लम्बी खिचनेवाली व्यथा साबित हुई है, जैसी व्यथाका अनुभव मैंने आजतक कभी नहीं किया था। इसमें मैंने बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव देखे, आशाओं और घोर निराशाओंकी आँखमिचौनी देखी। जब सब-कुछ प्रतिकूल ही प्रतिकूल दिखाई देता है तब कभी-कभी परिस्थितियाँ ऐसा पल्टा खाती हैं कि सब-कुछ अनुकूल हो जाता है। एक समय तो मुझे लगा कि कुछ ऐसा ही हो गया है और तब सभी द्वार खुले दिखाई पड़ने लगे और ऐसा सम्भव लगने लगा कि सरकारके रुखमें कदाचित् वैसी ही नरमी आ