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१००. अब भी समस्यासे आँखें चुरा रहे हैं

हालमें ही इन पृष्ठोंमें तथाकथित अस्पृश्योंके मन्दिर प्रवेशकी जटिल समस्यासे सम्बन्धित एक मामलेपर विचार किया गया था। अब दक्षिण भारतमें ऐसे ही एक मुकदमेका फैसला और हुआ है। माला जातिके मुरुगेसन नामक एक व्यक्तिको तिरुच्चाणूरमें एक मन्दिरमें पूजाके लिए प्रवेश करनेके अपराधमें तिरुपतिके स्थायी उपमजिस्ट्रेटके समक्ष पेश किया गया था। छोटी अदालतने उस प्रवेशको भारतीय दण्डविधानकी २९५ वीं धाराके अनुसार वर्ग विशेषके धर्मका अपमान करने के उद्देश्यसे (मन्दिरको) "अपवित्र करने" का अपराध मानकर उसे ७५ रुपये जुर्माना अथवा जुर्माना न देनेपर एक महीनेकी सख्त कैदकी सजा दी। किन्तु गरीब अन्त्यजके सौभाग्यसे कुछ सुधारकोंने उसके मामलेमें दिलचस्पी ली। फलतः इस फैसलेके खिलाफ अपील दायर की गई। अपील अदालतने अपीलको मंजूर कर लिया और जो फैसला सुनाया उसमें से मैं निम्नलिखित अंश उद्धृत कर रहा हूँ:

छोटी अदालत में मुद्दईकी तरफसे सात गवाहोंके इजहार हुए थे। उन्होंने अपने इजहारोंमें कहा था कि मुजरिम माला जातिका है। मालाओंको मन्दिरमें जानेकी मनाही है। और यदि वे उसमें प्रवेश करें तो वह मन्दिर अपवित्र हुआ माना जाता है। यह भी कहा गया है कि अपील करनेवाला मन्दिरके गर्भगृहतक पहुँच गया था, जहाँ केवल सवर्ण ही जा सकते हैं। वह उस समय सभ्य पोशाक पहने हुए था और भस्म-तिलक आदि लगाये हुए था। पुजारीने उसे सवर्ण हिन्दू समझा और उससे नारियल लेकर उसकी ओरसे कपूरकी आरती भी की। इसके लिए अपीलकर्ताने चार आनेका निर्धारित शुल्क भी दिया था। अपीलकत्तक वहाँसे जानेके बाद मन्दिरके व्यवस्थापकोंको मालूम हुआ कि वह माला जातिका था; और चूँकि उसके प्रवेशसे मन्दिर अपवित्र हुआ माना गया, इसलिए उसे शुद्ध करना आवश्यक हो गया।
पहले तो इस बातपर विचार होना चाहिए कि मुद्दईकी ओरसे जुर्म कायम करनेके लिए जिन बातोंको सिद्ध करना जरूरी है वे सिद्ध की गई हैं या नहीं। अभियुक्त माला जातिका है और मन्दिरमें उसके प्रवेशसे मन्दिरकी पवित्रता भंग हो गई, यह बात इस मानेमें पूरी तरह सिद्ध कर दी गई है कि उसके मन्दिरमें जानेसे पूजा-अर्चाकी मान्य पद्धतिको दृष्टिसे मन्दिर अपवित्र हो गया था। लेकिन, इसके अलावा यह बात साबित करना जरूरी है कि उसके प्रवेशसे किसी वर्ग के धर्मका अपमान हुआ है और यह कि अभियुक्तका ऐसा अपमान करनेका इरादा या अथवा वह ऐसे परिणाम की सम्भावनासे अवगत था। ऐसा जान पड़ता है कि मुद्दईकी ओरसे इस बातको ध्यान में रखकर मुकदमा नहीं चलाया गया है।