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अब भी समस्यासे आँखें चुरा रहे हैं
और उसके किसी भी गवाहके बयानसे यह बात प्रकाशमें नहीं आई है कि अभियुक्तका यह कार्य गवाहोंके अथवा किसी भी वर्गके व्यक्तियोंके धर्मका अपमान है। तब फिर अभियुक्तका ऐसा अपमान करनेका इरादा था अथवा वह ऐसे परिणामकी सम्भावनासे अवगत था, इस तरह की कोई बात करना तो बेकार ही है। मुद्दई द्वारा पेश किये गये सबूतोंमें यह त्रुटि होनेके कारण, मेरे खयालसे, जुर्म साबित नहीं हो सकता। मैं नहीं समझता कि मुकदमा फिरसे चलाये जानेकी इजाजत दी जानी चाहिए।

इस मामलेमें भी हम देखते हैं कि बेचारे तिरस्कृत अन्त्यजोंके विरुद्ध मुकदमा दायर करनेवाले लोग, न्यायाधीशगण और अभियुक्तका बचाव करनेवाले लोग, ये सभी उनके सहधर्मी हिन्दू लोग ही थे। यहाँ फिर अपराधी सख्त कैदकी सजासे बच गया है। (क्योंकि मेरा खयाल है कि वह इतना भारी जुर्माना नहीं दे सकता था।) लेकिन फिर इस मामलेके बाद भी समस्या ज्योंकी-त्यों है। हिन्दू न्यायाधीश यह निर्णय दे सकता था कि यदि कोई अन्त्यज हिन्दू पूजा करनेके लिए मन्दिर प्रवेश करता है तो उसके उस कार्यसे जिस हिन्दू धर्म में होनेका वह दावा करता है और जिसका कि वह एक अंग माना जाता है उस हिन्दू धर्मका किसी भी अर्थमें अपमान नहीं होता है। कुछ हिन्दुओंके विचारसे उसका मन्दिर प्रवेश अनुचित भले ही हो, रूढ़ि-विरुद्ध भी हो या चाहे जो कुछ हो, लेकिन उससे किसी भी वर्गके धर्मका ऐसा अपमान नहीं होता है कि वह भारतीय दण्ड-विधानके अनुसार जुर्म समझा जाये। यह उल्लेखनीय है कि अपराधीके शरीरपर तिरस्कृत जातिके कोई चिह्न न थे, उसकी पोशाक सभ्य थी और वह भस्म और तिलक लगाये हुए था। सच तो यह है कि यदि ये दलित लोग इस बातपर उतर आयें कि वे अपना पता नहीं बतायेंगे तो उन्हें पहचान पाना मुश्किल होगा। धर्मका पवित्र नाम लेकर मनुष्योंपर अत्याचार करना विशुद्ध धर्मान्धता है। इन लोगोंको यह मालूम नहीं है कि वे जितने इज्जतदार होने का दावा करते हैं उतनी ही इज्जतवाले, और हिन्दुओंको जिन धार्मिक विधियोंका पालन करना चाहिए उन सब धार्मिक विधियोंका आदर करनेवाले मनुष्योंको सार्वजनिक मन्दिरों में दाखिल होने से रोककर वे स्वयं अपने ही धर्मको भ्रष्ट कर रहे हैं। मन्दिरमें प्रवेशके लिए अमुक धार्मिक विधियोंके पालनकी माँगसे ज्यादा न तो किसी व्यक्तिको किसीपर कुछ थोपनेका अधिकार है और न ही इससे ज्यादाकी अपेक्षा करनेका। मनुष्यके दिलको तो केवल ईश्वर ही जानता है और यह सम्भव है कि फटे-पुराने वस्त्र पहननेवाले अन्त्यजका हृदय अच्छे वस्त्रों से सुसज्जित किसी उच्चवर्गके हिन्दूके हृदयसे कहीं अधिक निर्मल हो।

[अंग्रेजी से]
यंग इंडिया, ११-३-१९२६