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१०१. टिप्पणियाँ

कविवर और चरखा

कविवरने अभय आश्रमके अपने भाषण में कहा था कि इन दिनों उनका शरीर दुर्बल है। लेकिन उनके शरीरके दुर्बल होनेपर भी अभय आश्रमके व्यवस्थापक डॉ० सुरेश बनर्जीने डॉ० ठाकुरको वहाँ बुलाकर अच्छा ही किया। यह आश्रम कोमिल्लामें है और पाठक जानते ही हैं कि इस आश्रमकी स्थापना खादीके विकासके लिए की गई थी। लोगोंको यह भ्रान्ति है कि कविवर चरखा और खादी आन्दोलनके सर्वथा विरुद्ध हैं। यदि किसी खण्डनकी आवश्यकता रही हो तो कविवर द्वारा मानपत्र स्वीकार कर और इससे उनके खादी अन्दोलनमें उनके सहयोगकी जो ध्वनि निकलती है उससे लोगोंकी इस भ्रान्तिका खण्डन हो जाता है। 'सवेंट' में उनके भाषणका सारांश प्रकाशित हुआ है; उसमें उन्होंने आन्दोलनके बारेमें जो चर्चाकी है उसे मैं नीचे उद्धृत कर रहा हूँ:

संयोगवश किसी देशमें जन्म लेनेसे ही वह देश उसका नहीं जाता; ऐसा तो तब होता है जब कोई व्यक्ति उसके लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है। जानवरोंके शरीरपर तो बाल होते हैं, परन्तु मनुष्यको कातना और बुनना पड़ता है, क्योंकि जानवरोंको जो बाल दिये गये हैं वे स्थायी और प्रकृति प्रदत्त होते हैं। परन्तु मनुष्यको उपलब्ध साधनोंको अपने काममें लानेके लिए नये सिरेसे बनाना और सँवारना पड़ता है।

भाषणमें और भी विचारपूर्ण बातें कही गई हैं, जो स्वराज्यके लिए काम करने वालोंके लिए बड़ी उपयोगी हैं। कविवर कहते हैं:

अबतक हम जो भारतको उसके सच्चे रूपमें साकार नहीं कर पाये हैं उसका कारण यह है कि हमने प्रतिदिन और क्षण-क्षण अपने परिश्रमके द्वारा उसका सर्जन, उसका निर्माण नहीं किया, उसे स्वस्थ, सशक्त और फलदायी बनानेका प्रयत्न नहीं किया।

इस प्रकार वे हम सबसे अनुरोध करते हैं कि यदि हमें स्वराज्य प्राप्त करना है तो हममें से हरएकको रोजाना मेहनत करनी चाहिए। दूसरे ही वाक्यमें वे कहते हैं कि हमें

किसी बाहरी घटनाक्रम के फलस्वरूप स्वराज्य प्राप्त करनेका स्वप्न नहीं देखना चाहिए।

कविवर कहते हैं:

यह उतने ही अंशोंमें हमारा हो सकता है जितने अंशोंमें हम अपनी सेवा द्वारा समस्त देशमें अपनी ज्ञान-चेतनाका प्रसार करने में सफल होंगे।